उपचारात्मक शिक्षण | शिक्षण विधियां

आज की इस महत्वपूर्ण पोस्ट में उपचारात्मक शिक्षण (Upcharatmak shikshan in hindi) , जो की शिक्षण विधियों का एक टॉपिक है, उपचारात्मक शिक्षण के पक्ष, महत्व, उदेश्य , विधियाँ आदि के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी गई है|

Contents

उपचारात्मक शिक्षण (Upcharatmak shikshan in hindi)

कमजोर शिक्षार्थियों के शिक्षण अधिगम के दोषपूर्ण प्रभावों को दूर करने की प्रक्रिया उपचारात्मक शिक्षण कहलाती है,
ऐसा शिक्षण दोषों के निदान पर आधारित होता है और शिक्षार्थी की कमजोरियों को दूर करता है।

  • उपलब्धि परीक्षण से शिक्षार्थियों के उपलब्धि स्तर का पता लगाया जाता है।
  • निदानात्मक परीक्षण द्वारा यह पता लगाया जाता है कि शिक्षार्थी को किसी विषय को समझने में कहाँ कठिनाई का अनुभव होता है।
  • निदानात्मक परीक्षण द्वारा शिक्षार्थियों को हुई कठिनाइयों का पता लगाकर उसे उपचारात्मक शिक्षण द्वारा दूर किया जाता है।

उपचारात्मक शिक्षण के मुख्य पक्ष

  • निदानात्मक पक्ष
  • उपचारात्मक कार्य

निधानात्मक परीक्षण की विधियाँ

  1. निरीक्षण विधि: इसमें छात्रों से व्यक्तिगत सम्पर्क करके उनकी स्थितियों के बारे में जानकारी दी जाती है।
  2. निदानात्मक परीक्षा: छात्रों की भाषागत त्रुटियों एवं कमजोरियों की पहचान हेतु इसका प्रयोग होता है। इसमें वस्तुनिष्ठ प्रश्नों को सम्मिलित किया जाता है।

इसमें प्रक्षेपित परीक्षण (Projective Tests) का प्रयोग किया जाता है। व्यक्ति के अवांछित एवं असामान्य व्यवहारों का पता इसी प्रकार के परीक्षणों से किया जाता है।

निदानात्मक परीक्षण में पदों के सुधार के लिए पद विश्लेषण भी किया जाता है। पद विश्लेषण के लिए गलत पदों को महत्त्व दिया जाता है और इसमें स्टेनले विधि का प्रयोग करते हैं।

उपचारात्मक शिक्षण के उद्देश्य

  • अधिगम सम्बंधी दोषों का निराकरण करना।
  • छात्रों की ज्ञान सम्बंधी त्रुटियों का निराकरण करना।
  • छात्रों की वैयक्तिक कठिनाइयों को दूर करना।
  • शिक्षण की वैयक्तिक कठिनाइयों को दूर करना।
  • शिक्षण में मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों का अनुसरण करना।
  • छात्रों में स्पर्द्धा की भावना जागृत करना।
  • व्यक्तिगत भिन्नता के आधार पर पाठन करना।
  • समय एवं शक्ति का संरक्षण करना।
  • दोषपूर्ण अभ्यास, कुशलता एवं मनोवृत्तियों का समापन करना।

भाषा में उपचारात्मक शिक्षण की प्रक्रिया

  • निदानात्मक परीक्षणों में छात्रों द्वारा की गई त्रुटियों का विश्लेषण करना चाहिए।
  • त्रुटियों के आधार पर अलग-अलग अभ्यासों का निर्माण करना चाहिए।
  • विशेष सामग्री को त्रुटियों के प्रकार व कारणों को जानना चाहिए।
  • एक ही प्रकार की त्रुटि के लिए विभिन्न प्रकार के अभ्यास प्रश्न होने चाहिए।
  • शिक्षण सूत्रों का प्रयोग अवश्य किया जाना चाहिए।

उपचारात्मक शिक्षण के आधारभूत सिद्धांत

  • उपचारात्मक शिक्षण शिक्षार्थी के वास्तविक शैक्षिक स्तर से आरम्भ किया जाए चाहे कक्षा कोई भी हो।
  • छात्र को समय-समय पर परीक्षाओं या रेखाचित्र आदि से यह बताते रहना चाहिए कि उसने कितनी प्रगति कर ली है।
  • शिक्षार्थियों को अभ्यास कार्य के लिए पुरस्कृत कर प्रोत्साहित किया जाए।
  • उसको दिए जाने वाले कार्यों एवं अभ्यासों में विभिन्नता हो ताकि उसका कार्य रूखा एवं थकावट उत्पन्न करने वाला न हो जाए।

भाषा शिक्षण में मूल्याकन

Leave a Reply

%d