Bhasha shikshan me mulyakan : इस पोस्ट में Reet के एक महत्वपूर्ण टॉपिक हिंदी की शिक्षण विधियां के एक टॉपिक ‘भाषा शिक्षण में मूल्याकन‘ का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है|
Contents
भाषा शिक्षण में मूल्याकन का महत्व
- मूल्यांकन वह प्रक्रिया है जिसके आधार पर किसी छात्र के ज्ञान का आकलन किया जाता है।
- मूल्यांकन के द्वारा ही छात्र की किसी विषय में कमियों, किसी विषय के प्रति रुचि और उसकी प्रतिभा का आकलन किया जाता है।
- परीक्षा का उद्देश्य पूर्णरूप से समझने के लिए एक शब्द का प्रयोग किया जाता है जिसे मूल्यांकन कहते हैं।
- मूल्यांकन शब्द बालक की समस्त प्रगति की जाँच करने के प्रयोग में आता है।
- मूल्यांकन शिक्षण पर भी प्रभाव डालता है इसलिए इस पूरी प्रणाली को मूल्यांकन शिक्षण प्रणाली कहते हैं।
- मूल्यांकन का उद्देश्य परीक्षा में सुधार करने के साथ-साथ शिक्षण विधियों में भी सुधार करना है।
- मूल्यांकन का आधार यह है कि जितना पढ़ाया गया है उस सबकी जाँच हो और जिसकी जाँच की जाती है वह सब पढ़ाया गया हो।
- मूल्यांकन बालकों की प्रगति की ही जाँच नहीं कराता बल्कि इसका संकेत भी देता है कि बालकों को पर्याप्त अनुभव दिये गये हैं अथवा नहीं।
- उद्देश्य, सीखने के अनुभव व मूल्यांकन तीनों का समन्वय व मिलान ही मूल्यांकन शिक्षण प्रणाली का सार है।
मूल्यांकन की परिभाषा (Bhasha shikshan me mulyakan)
क्विलिन व हन्ना के अनुसार– ” छात्रों के व्यवहार में विद्यालय द्वारा लाये गये परिवर्तनों के विषय में प्रमाणों के
संकलन और उसकी व्याख्या करने की प्रक्रिया ही मूल्यांकन है।”
एम.एन. कन्डेकर के अनुसार– “ मूल्यांकन की परिभाषा एक व्यवस्थित रूप में की जा सकती है इस बात को निश्चित
करती है कि विद्यार्थी किस सीमा तक उद्देश्य प्राप्त करने में समर्थ रहा है।”
मूल्यांकन पद्धतियाँ
मूल्यांकन की दो पद्धतियाँ हैं—
- संख्यात्मक पद्धति
- गुणात्मक पद्धति
1. संख्यात्मक पद्धति के पक्ष
- ज्ञानात्मक पक्ष
(i) मौखिक पक्ष
- ● श्लाका पद्धति
- शास्त्रार्थ पद्धति
- प्रश्नावली पद्धति
- भाषण पद्धति
- वाचन पद्धति
(ii) लिखित पक्ष
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- प्रत्यभिज्ञान
- प्रत्यास्मरण
प्रत्यभिज्ञान
- अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न
- लघुत्तरात्मक प्रश्न
- निबन्धात्मक प्रश्न
- क्रियात्मक पक्ष
- चार्ट
- मॉडल
- मानचित्र
- मार्जनी
2. गुणात्मक पद्धति के पक्ष
भावनात्मक पक्ष
- निरीक्षण विधि
- आत्मदर्शन विधि
- साक्षात्कार विधि
- समाजमिति विधि
मूल्यांकन के उद्देश्य
- ज्ञान की जाँच एवं विकास की जानकारी: विद्यार्थी निर्धारित पाठ्यक्रम से उद्देश्यों की प्राप्ति किस सीमा तक कर लिये हैं। पाठ्यक्रम से विद्यार्थियों का कितना विकास हुआ है। बालकों के विकास में बाधक तत्त्व कौन-कौनसे हैं। आदि की जानकारी करना इनका प्रमुख उद्देश्य है।
- अधिगम की प्रेरणा: मापन तथा मूल्यांकन द्वारा अधिगम को प्रेरित किया जाता है और पूर्व निर्धारित उद्देश्यों तक पहुँचने का प्रयास किया जाता है।
- व्यक्तिगत भिन्नताओं की जानकारी: छात्रों के पारस्परिक भिन्नता की जानकारी मिलती है, जिससे उनके शारीरिक, मनोवैज्ञानिक दोषों का पता चलता है।
- निदान: मापन एवं मूल्यांकन का एक प्रमुख उद्देश्य है कि विद्यार्थियों के कमजोर क्षेत्रों की पहचान करके उन्हें आगे बढ़ाने में मदद करता है
- शिक्षण की प्रभावशीलता ज्ञात करना: मूल्यांकन की सहायता से शिक्षण की विधियों की प्रभावशीलता का आकलन किया जाता है।
- पाठ्यक्रम में सुधार: मूल्यांकन का एक प्रमुख उद्देश्य उपयोगी पाठ्य पुस्तक की उपादेयता की जाँच करके उसकी उपयोगिता को बढ़ाने के लिए पाठ्यक्रम में सुधार करना है।
- चयन: मूल्यांकन का एक प्रमुख उद्देश्य उपयोगी पाठ्यपुस्तकों व आवश्यकता व योग्यतानुरूप विद्यार्थियों का चयन करने में सहायता प्रदान करना है।
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