प्राचीन काल में इतने कर(टैक्स) और लाग बाग़ लगाये जाते थे राजा-महाराजों द्वारा

राजस्थान के लाग-बाग़ ( rajasthan ke lag-bag ) इस लेख में राजस्थान में विभिन्न राजा महाराजो के द्वारा आम लोगो से वसूला जाने वाला कर ( लाग-बाग़) का विस्तार से वर्णन इस पोस्ट में किया गया है|

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rajasthan ke lag-bag

इन बेगार प्रथा व करों के विरुद्ध किसानों ने कई आंदोलन किए। यह कर (लाग-बाग) विभिन्न नामों से वसूले जाते थे

मालया मिलणो कर

जागीरदार द्वारा व्यापारियों व किसानों से ली जाने वाली भेंट ‘ मालया मिलणो’ कहलाती थी।

अंग लाग कर

प्रत्येक किसान के परिवार के प्रत्येक सदस्य से जो पाँच वर्ष से ज्यादा आयु का होता था, प्रति सदस्य एक रुपया कर के रूप में लिया जाता था, जिसे अंग-लाग ‘ कहा जाता था।

कोटड़ी खर्च लाग

ठिकाने की कोटड़ी के खर्च के लिए प्रत्येक परिवार से एक से छः रुपया तक वार्षिक कर लिया जाता था।

खर-गढ़ी कर

सार्वजनिक निर्माण या दुर्गों के भीतर निर्माण कार्यों के लिए गाँवों से बेगार में गधों को मँगवाया जाता था। बाद में गधों के बदले’ खर-गढ़ी लाग वसूल की जाने लगी।

गर्ज-लाग

यदि जागीरदार अपने पट्टे के गाँव में जाता था तब गाँव वाले रुपए इकट्ठे कर जागीरदार को भेंट में देते थे।

चँवरी लाग

किसानों के पुत्र या पुत्री के विवाह पर एक से पच्चीस रुपए तक चँवरी लाग के नाम पर लिए जाते थे।

चूड़ा लाग

जब भी ठकुराइन नया चूड़ा पहनती थी तब काश्तकारों को उसका मूल्य चुकाना पड़ता था।

दस्तूर लाग

भू-राजस्व कर्मचारी पटेल, पटवारी, कानूनगो, तहसीलदार एवं चौधरी जो अवैध रकम किसानों से वसूल करते थे उसे दस्तूर’ कहा जाता था।

धुवों या झूपी लाग

यह एक प्रकार का गृह कर था जो प्रति घर एक से पाँच रुपया वार्षिक होता था।

नज़राना

यह लाग प्रति वर्ष किसानों से जागीरदार एवं पटेल वसूल करते थे। जागीरदार राजा को एवं पटेल तहसीलदार को नज़राना देता था जिसकी रकम किसानों से वसूल की जाती थी।

फाड्या लाग

जागीरदार द्वारा हासिल का हिस्सा लेने हेतु लाए कपड़ों के लिए एक से डेढ़ मन धान लाग के रूप में लिया जाता था।

कमठा लाग

गढ़ के निर्माणमरम्मत हेतु दो रुपए प्रति घर से वसूले जाते थे।

खिचड़ी लाग

राज्य की सेना द्वारा किसी गाँव के पास पड़ाव डालने पर उसके भोजन के लिए गाँव के लोगों से जो कर वसूल किया जाता है, उसे ‘ खिचड़ी लाग‘ कहते थे।

खेड़-खर्च

यह कर मारवाड़ राज्य में सेना के खर्च के नाम पर वसूला जाता है। जिसे ‘ खेड़ खर्च‘ के नाम से जाना जाता था।

काँसा लाग

किसानों के घर शादी या अन्य समारोह होने पर उनको भेंट स्वरूप 10-15 पत्तल भोजन व कुछ राशि जागीरदारों के ठिकाने पर कर के रूप में भेजनी पड़ती थी। उत्तराधिकारी शुल्क-इसको विभिन्न नामों से पुकारा जाता था। हुक्मराना, पेशकशी, कैद खालसा, तलवार बंधाई, नज़राना आदि।

अखराई

राज्यकोष में जमा होने वाली राशि पर दी जाने वाली
रसीद पर एक रुपये पर एक पैसा लिया जाना ‘ अखराई’ कहलाता था।

जकात

जकात कर बीकानेर राज्य में आयात-निर्यात तथा चूँगी कर और जोधपुर व जयपुर में सामर के नाम से वसूला जाता था।

आबियाना कर

आबियाना-पानी पर लगाए जाने वाले कर को आबियाना कहते थे।

ईच लाग-बाग़

ईच-सब्जी बेचने वाली मालनियों से वसूला जाने वाला कर ‘ ईच‘ कहा जाता था।

कूँता और लाटा

रियासत काल में लगान वसूलने के तरीके थे।

मापा या बारूता कर

मेवाड़ में एक गाँव से दूसरे गाँव में माल लाने ले जाने पर यह कर वसूला जाता था।

गनीम बराड़

मेवाड़ में युद्ध कर वसूल किया जाता था। जिसे ‘ गनीम बराड लाग‘ कहते हैं।

अंगाकर

मारवाड़ में महाराजा जयसिंह के समय प्रति व्यक्ति से एक रुपए की दर से वसूल किया जाने वाला कर

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