Rajasthan GK : भरतपुर के लोक नृत्य | Bhartpur ke lok nritya

Rajasthan GK : भरतपुर के लोक नृत्य (Bhartpur ke lok nritya) इस लेख में भरतपुर क्षेत्र के प्रमुख लोक नृत्यों का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गय है, यह लेख भर्ती परीक्षाओ की तैयारी कर रहे विद्यार्थीयो के लिए अति महत्वपूर्ण है, इस लेख में बम नृत्य, चरकुला नृत्य, बिन्दौरी नृत्य, डांग नृत्य, थाली नृत्य, डंडिया नृत्य, पैजन नृत्य, शिकारी नृत्य, लांगुरिया नृत्य, खारी नृत्य, नाहर नृत्य, चरवा नृत्य, गोगा नृत्य, वीर तेजाजी नृत्य, बालदिया नृत्य, पनघट नृत्य आदि का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है यह पोस्ट REET, CTET, UPTET, PTET, RAS, PATWAR, VDO, RPSC 1st GRADE, 2nd GRADE, UPSC, SI, POLISE CONSTABLE आदि भर्ती परीक्षाओ के लिए अति महत्वपूर्ण है| भर्ती परीक्षाओ की तैयारी कर रहे विद्यार्थी एक बार इस लेख को जरुर पढ़ लेना चाहिए, यह पोस्ट उनकी तैयारी को और अधिक मजबूती प्रदान होगी|

Contents

Bhartpur ke lok nritya

बम नृत्य (Bhartpur ke lok nritya)

  • बम नृत्य विशेष रूप से भरतपुर जिले में प्रसिद्ध है।
  • नृत्य फाल्गुन माह में नयी फसल आने के उपलक्ष में किया जाता है।
  • बम नृत्य में नगाड़ा नामक वाद्य यंत्र का प्रयोग किया जाता है।
  • बम की धुन के साथ रसिया गाया जाने के कारण इस नृत्य को बम रसिया नृत्य भी कहते है।
  • यह नृत्य करते समय दो फुट व्यास के ढ़ाई फुट ऊँचे नगाड़े पर खड़े होकर दोनों हाथों में मोटे डण्डे (बम) लेकर बजाया जाता है। दूसरा दल वादकों का होता है। जो थाली को गिलास पर उल्टा रख कर बजाते है। तीसरा दल गायकों व नृत्यकारों का होता है। जो गा-गाकर नाचते है

चरकूला नृत्य

  • चरकूला नृत्य पूर्वी क्षेत्र विशेष रूप से भरतपुर जिले में किया जाता है। यह ब्रज क्षेत्र में भी प्रसिद्ध है
  • यह नृत्य विशेष रूप से उत्तर प्रदेश का नृत्य है।
  • चरकूला नृत्य धातु के बर्तन पर दीपक जलाकर उसको सिर पर रखके महिलाएं करती हैं नृत्य करते समय महिलाएं हाथ में लोटा लिए होती है। आदमी इनके सामने ताली बजाते हुए नृत्य करते है

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बिन्दौरी नृत्य

  • बिन्दौरी नृत्य मुख्य रूप से झालावाड़ जिले का है।
  • यह नृत्य गैर शैली का नृत्य है।
  • बिन्दौरी नृत्य होली-विवाह के अवसर पर किया जाता है

डांग नृत्य

  • डांग नृत्य नाथद्वारा (राजसमन्द) का प्रसिद्ध नृत्य है
  • नृत्य श्रीनाथ जी के भक्तों के द्वारा किया जाता है
  • डांग नृत्य एक धार्मिक नृत्य है।
  • नाथद्वारा (राजसमन्द) में वल्लभ सम्प्रदाय की गद्दी स्थित है

थाली नृत्य

  • थाली नृत्य मुख्य रूप से जोधपुर का प्रसिद्ध नृत्य है।
  • यह नृत्य पाबूजी के भक्तों के द्वारा किया जाता है।
  • थाली नृत्य के अन्तर्गत रावण हत्था वाद्य यन्त्र का प्रयोग किया जाता है
  • इस नृत्य में नृत्यकार थाली को अंगुली पर तेज गति से घूमाते हुए नृत्य करते है।

डांडिया नृत्य

  • डाडिया नृत्य मारवाड़ क्षेत्र का है।
  • डांडिया नृत्य पुरूषों के द्वारा किया जाता है
  • यह नृत्य होली के बाद शुरू होता है
  • डांडिया नृत्य में चौक के बीच 21 हनाई वादक, नगाड़ी व शहनाई वादक बैठते है। बीस-पच्चीस पुरूषों की टोली हाथों में डांडिया टकराते हुए वृत में आगे बढ़ते हैं।
  • नृत्य में किये जाने वाले विभिन्न स्वांग करते है
  • डांडिया नृत्य में धमाल, नृत्य प्रधान गीत है। इन गीतों में बड़ली के भेरुंजी का गुणगान करते है।

पेजण नृत्य

  • पेजण नृत्य मुख्यतः बागड़ क्षेत्र का है
  • यह नृत्य दीपावली के अवसर पर किया जाता है।
  • पेजण नृत्य को पुरूष महिला की वेशभूषा धारण करके करते है

शिकारी नृत्य

  • शिकारी नृत्य बारां जिले का प्रमुख नृत्य है
  • यह शिकारी नृत्य शहरिया जनजाति का प्रसिद्ध नृत्य है

लांगुरिया नृत्य

  • यह नृत्य करौली जिले का प्रमुख है।
  • लागुरिया नृत्य धार्मिक नृत्य है
  • लांगुरिया नृत्य कैलादेवी के लख्खी मेले में भक्तों द्वारा किया जाता है
  • कैलादेवी करौली के यदुवंशी शासकों की कुल देवी है।
  • लांगुरिया नृत्य में एक काल्पनिक पात्र होता है।

खारी नृत्य

  • खारी नृत्य मुख्यतः अलवर में लोकप्रिय है।
  • यह नृत्य एक वैवाहिक नृत्य है।
  • खारी नृत्य दुल्हन की विदाई के समय उसकी सखियों के द्वारा किया जाने वाला मनमोहक नृत्य है।

नाहर नृत्य:

  • यह नृत्य भीलवाड़ा के माण्डल गाँव में किया जाता है
  • नाहर नृत्य होली के तेहरवें दिन के बाद किया जाता है।

चरवा नृत्य:

  • माली समाज की स्त्रियों के द्वारा किसी स्त्री के संतान होने पर कांसे के घड़े में दीपक रखकर उसे सिर पर धारण कर चरवा नृत्य कियाजाता है।
  • सामान्यतः कांसे के घड़े चरवा के कारण ही इसका यह नाम पड़ा

गोगा नृत्य

  • गोगा नृत्य गोगा नवमीं पर किया जाता है गोगा नृत्य में चमार लोग जो गोगा जी के भक्त होते हैं वे एक जुलूस निकालकर उसमें नृत्य करते है। इनके नृत्य बड़े उत्तेजक होते है।
  • इस गोगा नृत्य में गोगा भक्त अपनी पीठ पर सांकल से मारते है। सिर पर भी उसे चक्कर खाते हुए मारते हैं इस नृत्य में इनकी पीठ जख्मी हो जाती है।
  • गोगा नृत्य मे ढोल-डैरू नामक वाद्य यंत्र का प्रयोग किया जाता है।

वीर तेजा नृत्य

  • वीर तेजा नृत्य तेजा जी की अराधना में कच्छी घोड़ी पर सवार होके तलवार से युद्ध कौशल प्रदर्शन करते हुए गले में सर्प डालकर-छतरी व माला हाथ में लेकर तेजा जी की कथा के साथ पुरूषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य है।
  • तेजाजी के नृत्य के अंत में तेजा भगत नाग को अपनी जीभ पर कटवाते है
  • तेजाजी के नृत्य में अलगोजा-ढोलक-मंजीरा नामक वाद्य यत्रों का प्रयोग किया जाता है

बालदिया नृत्य

  • बालदिया एक घुमन्तु जाति है जो गेरू को खोदकर बेचने का व्यापार करती है
  • यह नृत्य गेरू को खोदकर बेचने के व्यापार को चित्रित करती है

पणघट / जेघड़ नृत्य

  • इसे ‘ जेघड़’ नृत्य भी कहते है। यह नृत्य राजस्थानी घेलपणिहारी ख्याल का मुख्य नृत्य है।
  • गगरियां सिर पर रखकर युवतियां नृत्य करती है तो लोग मंत्र मुग्ध हो जाते है

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