हिंदी के प्रमुख आलोचक एंव उनकी कृतिया | Hindi Ke Parmukh Aalochak Or Kritiya की इस महत्वपूर्ण पोस्ट में हिंदी साहित्य के प्रमुख आलोचक और उनकी कृतियों का वर्णन किया गया है|
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आलोचना का अर्थ और परिभाषा
आलोचना या समालोचना किसी वस्तु/विषय की, उसके लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए, उसके गुण-दोषों एवं उपयुक्तता का विवेचन करने वालि साहित्यिक विधा है। इसमें पाठ अध्ययन, विश्लेषण, मूल्यांकन एवं अर्थ निगमन की प्रक्रिया शामिल है। हिंदी आलोचना की शुरुआत 11 वीं सदी के उत्तरार्ध में भारतेन्दु युग से ही मानी जाती है।
हिंदी के प्रमुख चार आलोचकों के नाम लिखिए
- रामचन्द्र शुक्ल –
- नन्ददुलारे वाजपेई
- हजारीप्रसाद द्विवेदी
- रामविलास शर्मा
- डाॅ. नगेन्द्र प्रमुख आलोचक
- डाॅ. नामवर सिंह
- विजयदेव नारायण साही
हिंदी आलोचना की पहली पुस्तक
हिंदी आलोचना की पहली पुस्तक भारतेन्दु की पुस्तक ‘नाटक’ (1883) को माना जाता है। इस पुस्तक में नाटक का शास्त्रीय विवेचन और संक्षिप्त इतिहास दिया गया है।
Hindi Ke Parmukh Aalochak Or Kritiya
आलोचक का नाम | कृतिया |
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल | 1.चिन्तामणि (दो भाग), 2. रसमीमांसा, 3. भ्रमरगीतसार, 4. गोस्वामी तुलसीदास, 5. सूरदास, 6. जायसी ग्रन्थावली |
आचार्य नन्दुदुलारे वाजपेयी | 1. हिन्दी साहित्य-बीसवीं सदी, 2. आधुनिक साहित्य, 3. प्रेमचन्द, 4. जयशंकर प्रसाद, 5. महाकवि सूरदास, 4. नया साहित्य-नये प्रश्न, 7. राष्ट्रभाषा की समस्या |
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी | 1. हिन्दी साहित्य की भूमिका, 2. हिन्दी साहित्य का आदिकाल, 3. सूरसाहित्य, 4. कबीर, 5. हिन्दी साहित्य, 6. मध्यकालीन बोध का स्वरूप |
डॉ. नगेन्द्र | 1. रस सिद्धान्त, 2. सुमित्रानन्दन पन्त, 3. साकेत: एक अध्ययन, 4. रीतिकाव्य की भूमिका, 5. देव और उनकी कविता, 6. आधुनिक हिन्दी नाटक, 7. विचार और अनुभूति, 8. आधुनिक हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियां, 9. कामायनी के अध्ययन की समस्याएं, 10. नयी समीक्षा-नये सन्दर्भ, 11. भारतीय सौन्दर्यशास्त्र की भूमिका, 12. पाश्चात्य काव्यशास्त्र की परम्परा, 13. शैली विज्ञान |
डॉ. रामविलास शर्मा | 1. प्रगति और परम्परा, 2. प्रगतिशील साहित्य की समस्याएं, 3. आस्था और सौन्दर्य, 4. भाषा साहित्य और संस्कृति, 4. मार्क्सवाद और प्राचीन साहित्य का मूल्यांकन, 6. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और हिन्दी आलोचना, 7. प्रेमचन्द और उनका युग, 8. भारतेन्दु युग, 9. भाषा और समाज, 10. महावीरप्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण, 11. नयी कविता और अस्तित्ववाद, 12. प्राचीन भारत के मा भाषा परिवार, 13. मार्क्स और पिछड़े हुए समाज। |
डॉ. नामवर सिंह | 1. कहानी और नयी कहानी, 2. छायावाद, 3. कविता के नए प्रतिमान, 4. दूसरी परम्परा की खोज, 5. इतिहास और आलोचना, 6. आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियां |
शिवदानसिंह चौहान | 1. प्रगतिवाद, 2. साहित्य की परख, 3. आलोचना के मान, 4. साहित्य की समस्याएं. 5. साहित्यानुशीलन |
प्रकाशचन्द्र गुप्त | 1. नया हिन्दी साहित्य, 2. आधुनिक हिन्दी साहित्य, 3. हिन्दी साहित्य की जनवादी परम्परा |
अमृतराय | नयी समीक्षा |
डॉ. देवराज | 1. छायावाद का पतन, 2. साहित्य चिन्ता, 3. आधुनिक समीक्षा, 4. प्रतिक्रियाएं |
अज्ञेय | 1. त्रिशंकु. 2. आत्मनेपद |
इलाचन्द्र जोशी | 1. साहित्य सर्जना, 2. विवेचना, 3. साहित्य सन्तरण, 4. विश्लेषण, 5. साहित्य चिन्तन |
विश्वनाथप्रसाद मिश्र | वाड्मय विमर्श |
बलदेव उपाध्याय | भारतीय साहित्यशास्त्र-दो भाग |
लक्ष्मीनारायण सुधांशु | 1. काव्य में अभिव्यंजनावाद, 2. जीवन के तत्व और काव्य सिद्धान्त |
डॉ. आनन्द प्रकाश दीक्षित | रस सिद्धान्त-स्वरूप और विश्लेषण |
डॉ. सुरेशचन्द्र गुप्त | आधुनिक हिन्दी कवियों के काव्य सिद्धान्त |
डॉ. निर्मला जैन | रस सिद्धान्त और सौन्दर्य शास्त्र |
मुक्तिबोध | 1. एक साहित्यिक की डायरी, 2. नयी कविता का आत्म संघर्ष, 3. नए साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र |
गिरिजाकुमार माथुर | नयी कविता-सीमाएं और सम्भावनाएं |
धर्मवीर भारती | मानव मूल्य और साहित्य |
डॉ. रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव | शैली विज्ञान और आलोचना की नयी भूमिका |
डॉ. भोलानाथ तिवारी | अभिव्यक्ति विज्ञान |
डॉ. रघुवंश | आधुनिक साहित्य का परिप्रेक्ष्य |
डॉ. इन्द्रनाथ मदान | आज का हिन्दी उपन्यास |
नेमिचन्द्र जैन | अधूरे साक्षात्कार |
डॉ. बच्चनसिंह | 1. समकालीन साहित्य-आलोचना को चुनौती, 2. आलोचक और आलोचना |
लक्ष्मीकान्त वर्मा | 1. नयी कविता के प्रतिमान, 2. नए प्रतिमान पुराने निकष |
डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी | 1.नवलेखन, 2. भाषा और संवेदना |
गंगाप्रसाद विमल | समकालीन कहानी का रचना विधान |
डॉ. विद्यानिवास मिश्र | रीति विज्ञान |