राजस्थान की प्रमुख हस्तकलाएं | Rajasthan Ki Pramukh Hastkalaye PDF इस पोस्ट में राजस्थान की हस्तकला pdf | नमदे कंहा के प्रसिद्ध है? बंधेज कंहा का प्रसिद्ध है? गलीचे कंहा के प्रसिद्ध है? हाथी दांत की चुडिया कंहा की प्रसिद्ध है? आदि प्रश्नों के उत्तर आपको इस पोस्ट में मिलेंगे| Rajasthan Ki Pramukh Hastkalaye PDF
Contents
Rajasthan Ki Pramukh Hastklaye
थेवा कला
- रंगीन कांच पर सोने का सूक्ष्म चित्रांकन व नक्काशी को ही थेवा कला कहते है।
- थेवा कला का प्रमुख केन्द्र प्रतापगढ़ है
- नाथूजी सोनी इस कला के जन्मदाता है।
- महेश राज सोनी को थेवा कला के लिए 2015 में ‘ पदमश्री’ दिया गया।
टेराकोट
- मिट्टी को पकाकर उसकी मूर्तियां बनाई जाती है जिसके लिए मुख्य स्थान राजसमन्द का मोलेला गांव है।
- मोहनलाल कुमावत को इसके लिए पदमश्री पुरस्कार भी मिल चुका है।
अजरक प्रिंट
अजरक प्रिंट का अधिक प्रभाव बाड़मेर में है। ये तुर्की शैली से प्रभावित है और इसमें ज्यामितिय अंलकरण बनाये जाते है।
मलीर प्रिंट
मलीर प्रिंट भी बाड़मेर कि प्रसिद्ध है, इसमें काले व कत्थैई रंग का प्रयोग अधिक किया जाता है
लोक चित्रांकन
सीकर जिले के खण्डेला में कपड़े पर मोम की परत चढ़ाकर जो चित्र बनाये जाते है बातिक शैली कहलाती है।
पिछवाई चित्र
राजसमन्द के नाथद्वारा में कपड़े पर श्रीकृष्ण की बाल लिलाओं के चित्र बनाकर जो कृष्ण की प्रतिमा के पीछे लगाये जाते है। उन्हें पिछवाई चित्र कहते है
जयपुरी रजाई
जयपुर में बनी 250 ग्राम की रूई की रजाई विश्व प्रसिद्ध है।
बादला
जोधपुर में पानी को ठंडा रखने के लिए जो घड़ा बनाया जाता है, उसे बादला कहा जाता है
फड़
भीलवाड़ जिले के शाहपुरा में 5 मीटर चौड़े और 30 मीटर लम्बे कपड़े पर लोकदेवताओं की जीवनगाथाओं पर आधारित जो चित्र अंकित किये जाते है। उन्हें फड कहा जाता है
साफा
बावरा साफा पांच रंग युक्त बन्धेज का साफा तथा मोठड साफा दो रंग युक्त बंधेज का साफा है।
कांसे के बर्तन
कांसे के बर्तन के लिए भीलवाड़ा प्रसिद्ध है।
मृण मुर्तिया
मृण मुर्तियों के लिए मोलेला राजसंमद प्रसिद्ध है।
रमकड़ कला
- घीया पत्थरों से निर्मित खिलौनें रमकडा कहलाते है।
- इस उद्योग का प्रधान केन्द्र गलियाकोट डूंगरपुर है।
सांगानेरी प्रिंट
- सांगानेरी प्रिंट, सांगानेर की प्रसिद्ध है
- इसे मुन्नालाल गोयल ने अंतराष्ट्रीय दर्जा दिलाया।
बगरू प्रिटं
यह बगरू जयपुर की प्रसिद्ध है जिसमें प्राकृतिक रंगो का प्रयोग किया जाता है साथ ही बेल-बूटों की छपाई भी की जाती है।
संगमरमर की मूर्तियां
- संगमरमर की मूर्तियां जयपुर की प्रसिद्ध है।
- इसके लिए अर्जुनलाल प्रजापत को पदमश्री मिल चुका है।
दरियां
दरियां टांकला नागौर की प्रसिद्ध है। इनके साथ साथ खालावास जोधपुर और लवाण दौसा में भी दरियां बनाई जाती है।
गलीचे/ नमदे
- टोंक व जयपुर के गलिचे प्रसिद्ध है।
- बीकानेर और जयपुर की जेलों में बनाये जाने वाले गलीचे भी प्रसिद्ध है जो केदियों बारा बनाये जाते है।
कोटा डोरिया/ मसूरिया
- कोटा डोरिया/ मसूरिया कैथून कोटा का प्रसिद्ध है।
- गरोल बांरा की श्रीमती जैनब इसकी प्रमुख कलाकार है।
गोटा-किनारी
गोटा-किनारी का कार्य सीकर के खण्डेला में इसका प्रमुखता से कार्य होता है।
जाजम/ दाबु प्रिंट
ये अकोला चित्तौड़गढ़ की प्रसिद्ध है इसमें गाड़िया लौहारों के महिलाओं के कपड़े बनाये जाते है।
बंधेज प्रिंट
बंधेज प्रिंट जयपुर की प्रसिद्ध है।
लहरिया प्रिंट
लहरिया प्रिंट जयपुर व पाली की प्रसिद्ध है।
मीनाकारी
- सोने में रंग भरने की कला ही मीनाकारी है
- जयपुर इसका प्रमुख केंद्र है।
- राजा मानसिंह इसके कलाकारों को लाहौर से लेकर आये थे।
- कुदरत सिंह को इसके लिए पदमश्री मिल चुका है।
तारकशी
- चांदी के पतले तारों से जो जेवर बनाये जाते है। उसे तारकशी कहते है
- नाथद्वारा इसका प्रसिद्ध केन्द्र है।
ब्लू पॉटरी
- चीनी मिट्टी के सफेद बर्तनों पर नीला रंग भरने की कला को ही ब्लू पॉटरी कहा जाता है।
- जयपुर इसका प्रमुख केंद्र है।
- इस कला के लिए कृपाल सिंह को पदमश्री मिल चुका है।
- ब्लेक पॉटरी कोटा की प्रसिद्ध है।
बादले
बादले जस्ते के बने बर्तन जिन पर कपड़े या चमड़े की परत चढा दी जाती है। इसका प्रमुख केंद्र जोधपुर है।
कठपुतली योग
- यह उदयपुर में प्रसिद्ध है।
- भारतीय लोक कला मंडल उदयपुर कठपुतली खेल को प्रोत्साहन देता है।
- 1952 में देवीलाल सामर ने भारतीय लोक कला मंडल की स्थापना की थी।
काष्ठ कला
बस्सी चित्तौड़गढ़ में देवताओं के लकड़ी के मन्दिर बनाये जाते है। जिसे ही काष्ठ कला कहा जाता है। डुंगरपूर का जेवना लकड़ी के फर्नीचर के लिए विश्व प्रसिद्ध है ।
कृषि के औजार
- लकड़ी के औजार नागौर के प्रसिद्ध है।
- लोहे के औजार गंगानगर के प्रसिद्ध है।
मोजड़ी
मोजड़ी भीनमाल तथा बड़गांव जालौर के प्रसिद्ध है।
तलवार
तलवार बनाने का कार्य सिरोही क्षेत्र में किया जाता है।
कोफ्तागीरी
- लोहे मे सोने की कारीगीरी कोफ्तागीरी कहलाती है
- यह जयपुर व अलवर की प्रसिद्ध है।
हाथी दांत पर कार्य
- हाथी दांत का चूड़ा जोधपुर का प्रसिद्ध है।
- राजस्थान में राजपूत समाज में विवाह के अवसर पर हाथी दांत का चूड़ा पहनने की प्रथा है।
- हाथी दांत राजस्थान में सर्वाधिक केरल, कर्नाटक और थाइलैण्ड से आता है। Rajasthan Ki Pramukh Hastkalaye PDF
पगड़ी
पगड़ी मेवाड़ की पगड़ी वीरता का प्रतीक मानी जाती है।
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FAQ
उत्तर:- टेराकोटा मोलेला गाँव का प्रसिद्ध है
उत्तर:- जोधपुर में पानी को ठंडा रखने के लिए जो घड़ा बनाया जाता है, उसे बादला कहा जाता है
उत्तर:- बंधेज प्रिंट जयपुर की प्रसिद्ध है।
उत्तर:- दरियां टांकला नागौर की प्रसिद्ध है।
उत्तर:- हाथी दांत का चूड़ा जोधपुर का प्रसिद्ध है।
उत्तर:- लोहे मे सोने की कारीगीरी कोफ्तागीरी कहलाती है , यह जयपुर व अलवर की प्रसिद्ध है।
उत्तर:- चांदी के पतले तारों से जो जेवर बनाये जाते है,उसे तारकशी कहते है यह नाथद्वारा इसका प्रसिद्ध केन्द्र है।
उत्तर:- सोने में रंग भरने की कला ही मीनाकारी है, यह जयपुर की प्रसिद्ध है केंद्र है।
उत्तर:- रंगीन कांच पर सोने का सूक्ष्म चित्रांकन व नक्काशी को ही थेवा कला कहते है।
उत्तर:- ब्ल्यू पोटरी जयपुर की प्रसिद्ध है
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