Rajasthani shabdavli notes | राजस्थानी शब्दावली नोट्स

राजस्थानी शब्दावली नोट्स Rajasthani shabdavli notes इस लेख में राजस्थानी भाषा में इस्तेमाल किये जाने वाले महत्वपूर्ण शब्दों का समावेश किया गया है, जो राजस्थान के विभिन्न exam की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है, reet 2022 में राजस्थानी शब्दावली का टॉपिक जोड़ा गया है, reet 2022 की तैयारी कर रहे अभ्यर्थी एक बार अवश्य रूप से इस लेख का अध्ययन कर लेवे|

Contents

Rajasthani shabdavli notes

अगवाणी Rajasthani shabdavli notes

अतिथि का उसके आगे जाकर किया जाने वाला स्वागत अगवाणी कहलाता है।

अफरणो

पेट का गैस से फूलना अफरणो कहलाता है।

अधविचलो

शवयात्रा के दौरान आधी दूरी का रास्ता अधविचलो कहलाता है।

अडाणो रखना

अपनी किसी वस्तु को पैसों के लिए गिरवी रखना अडाणो रखना कहलाता है।

आसामी Rajasthani shabdavli notes

दूसरो की जमीन पर खेती करने वाला किसान आसामी कहलाता है।

जोहड़

बागड़ व शेखावटी क्षेत्र में पानी को सुरक्षित रखने के लिए बनाए गये चूनेदार कुए को स्थानीय भाषा में जोहड़ कहा जाता है।

तल्ली

रेतीले टीलों के बीच में स्थित नीचे की भूमि तल्ली कहलाती है।

अगाई सो सवाई

दीपावली से पूर्व बोई जाने वाली खेती अगेती कहलाती है। इस फसल के लिए एक कहावत प्रचलित है-“अगाई सो सवाई

अखड़, पड़त या पड़ेत्या

वह खेत जो वर्ष भर खाली पड़ा रहता वह अखड़, पड़त या पड़ेत्या कहलाता है।

चरणोत

वह भूमि जहा पशु चरने जाते है वह स्थान चरणोत कहलाता है।

माल्ल

काली भूमि को स्थानीय भाषा में माल्ल कहा जाता है।

सूड़

खेत में फसल को बोने से पूर्व उसमें झाड़-झंखाड़ को साफ करने की विधि स्थानीय भाषा में सूड़ कहलाती है।

बीड़

वह जमीन जिसमें घास तो पैदा होती है, परन्तु फसल उत्पन्न नहीं होती वह भूमि बीड़ कहलाती है।

ढींकल्ली

कुएं पर लगा हुआ लकड़ी का तुलानूमा यंत्र ढींकल्ली कहलाता है।

चड़सी

चमड़े का बना डोल चड़सी कहलाता है।

चामठ्या

वह डण्डा जिससे बैलों को हाका जाता है तथा जिसमें चमड़े की डोरिया बंधी होती है वह चामठ्या कहलाता है।

पणो

तालाब में पानी एवं दलदल सूखने पर जमी उपजाऊ मिट्टी की परत पणो कहलाती है।

पंचाल्ली

बांस की बनी एक बैंत जिसके सिरे पर लचीले भाग में पत्थर का टुकड़ा दबाकर फैंका जाता है वह पंचाल्ली कहलाता है।

आदोल्ली या अधियो

वह खेती जो आधे बंटवारे पर दी जाती है वह आदोल्ली या अधियो कहलाती है।

रूखाली

खेत में खड़ी फसल की पशु-पक्षियों से रक्षा करने की पद्धति रूखाली कहलाती है।

सांझ या सांझी

गेहूं की पुल्लियों का आड़ी अवस्था में रखा हुआ ढेर स्थानीय भाषा में सांझ या सांझी कहलाता है।

धूणी

एक ही स्थान पर थोड़ी लकड़ी को जलाकर लगाई गई आग धूणी कहलाती है।

गोफन / गोफण्यो

पत्थर को फेंकने के लिए सूत की बंट कर बनाई गई पट्टी या चमड़े को काटकर बनाई गई पट्टी जिसके दोनों छोरों में एक लम्बी डोरी लगी होती है वह गोफन कहलाती है। गोफन में रखकर फेंके जाने वाला पत्थर गोफण्यो कहलाता है।

कड़पा/ कड़पी/ कर्ड

खेत में फसल काटते समय जब पौधों को बांधे बिना ही रख दिया जाता है तो वह कड़पा/ कड़पी/ कर्ड कहलाती है।

फर्णाबो या फणावणो

खेत में नुकसान कर रहे पशु-पक्षियों को बाहर निकालने के लिए दूर से पत्थर या मिट्टी का ढेला फेंकने की क्रिया को फर्णाबो या फणावणो कहलाती है।

झांस या बोझांट

तेज आधी के साथ होने वाली वर्षा झांस या बोझांट कहलाती है।

ब्राइन

नमक प्राप्त करने के लिए नमक की क्यारियों में डाला गया लवणीय पानी ब्राइन कहलाता है।

मगरा या थारा

थार की रेतीली मिट्टी जो लवण युक्त होती है उसे स्थानीय भाषा में ” मगरा या थारा ” कहा जाता है।

रेह

शुष्क भागों में भूमि पर एकत्रित रेह नामक पदार्थ कांच बनाने के उपयोग में आता है।

सेरी या सेरा

खेत की बाड़ को तोड़ कर आवारा पशुओं द्वारा बनाया गया मार्ग सेरी या सेरा कहलाता है।

बिनौटा

दुल्हे-दुल्हन द्वारा विवाह के अवसर पर पहने वाली जुतियों को स्थानीय भाषा में बिनौटा कहा जाता है

बरण्ड

भीलो के द्वारा सावा झाड़ने हेतु काम में लिया जाने वाला पतली नाव की आकृति का बास बरण्ड कहलाता है।

आड/ अड्डा

दरी को बुनने के लिए बनाया गया ढाचा आड/ अड्डा के नाम से जाना जाता है

राली

जैसलमेर में कशीदाकारी बिछाने की वस्तु को लोक कला में ‘ राली ‘ के नाम से जाना जाता है

ताकड़ी

किसी वस्तु को तोलने के लिए बनाई गई बड़ी-तराजू को ताकड़ी कहते है।

पाशीब

किले की प्राचीर पर हमला करने के लिए रेत और अन्य वस्तुओ से निर्मित एक ऊँचा चबूतरा पाशीब कहलाता है।

जड़िया

नगो के ऊपर जड़ाई का काम करने वाले कारीगर जड़िया के नाम से जाने जाते है।

टपारा

कालबेलियों के द्वारा जिस ढक्कनदार पात्र में सांप को रखा जाता है उसे टपारा के नाम से जाना जाता है।

बिदकना, बिजूका, पुतला व अडुवा

अपनी फसल को पशु-पक्षियों से बचाने के लिए उन्हें डराने के लिए घास-फूस और लकड़ी के ढांचों को पुरूष अथवा महिला
की आकृति देकर खेत के बीच में स्थापित किये जाते है। ये दूर से बिल्कुल मानव जैसी आकृति दिखाई देती है। राजस्थान भाषा में इन्हें बिदकना, बिजूका, पुतला व अडुवा आदि नामों से जाना जाता है।

पावटी

पांव से चलाया जाने वाला एक यंत्र जिससे खेतों की सिंचाई होती है वह यंत्र पावटी कहलाता है।

हल

भूमि की जुताई के काम आने वाला यंत्र हल कहलाता है।

केरण

उबड़-खाबड़ (ऊँची-नीची) जमीन को बराबर करने वाला यंत्र केरण कहलाता है।

नॉई

धरती में बीज को बोने के काम आने वाला यंत्र नॉई कहलाता है।

दंताली

खेत में फसल के अन्दर उगे हुए कचरे को बाहर निकालने के लिए दंताली का प्रयोग किया जाता है।

जुअड़ा

हल को खींचने के लिए जोते गये बैलों के कंधों पर जिस उपकरण को लगाया जाता है, वह जुअड़ा कहलाता है।

पावड़ा

खुदाई के काम आने वाला उपकरण पावड़ा कहलाता है।

डागलो

खेत की देखभाल करने के लिए चार डडों के सहारे बनाई गई मचाननुमा झोंपड़ी डागलो कहलाती है।

तबक

गिलहरी को पकड़ने के लिए बना हुआ मिट्टी का ढक्कननुमा पात्र तबक कहलाता है।

बीछया

किसानों के द्वारा खेत में खड़ी फसल को पशुओं से बचाने के लिए थेपड़ियों को तीन ओर एक-दूसरे के साथ लगाकर बीच
में आग लगा दी जाती है। इसे बीछया कहते है।

चावर या सुहागा

जुते हुए खेत को सही तरीके से सवारने (समतल) के लिए काम लिये जाने वाला यंत्र चावर या सुहागा कहलाता है।

आधूणो

पश्चिम दिशा को स्थानीय भाषा में आधूणो के नाम से जाना जाता है।

झरंड़ काकड़ी

पपीते को स्थानीय भाषा में झरंड़ काकड़ी के नाम से जाना जाता है।

झोल गिलट Rajasthani shabdavli notes

किसी धातु पर सोने-चादी का चढ़ाया जाने वाला झोल गिलट कहलाता है।

छींकी

ऊँट के मुंह पर बांधी जाने वाली जाली छींकी कहलाती है।

चंदो

किसी कार्य की सहायता के लिए कई व्यक्तियों से उगाया हुआ धन चंदो कहलाता है।

ओरणी

खेत में बीज ओटने (बोने) के काम में लाई जाने वाली मोटे (बांस) की नलिका (ओरणी) कहलाती है।

हाकहली

पशुओं को डराने के लिए जोर-जोर से आवाज देने की क्रिया हाकहली कहलाती है।

रहट / आट

वह कुआं जिस पर रहट से सिंचाई होती है वह आट कहलाता है।

दोबड़े / उकरड़ी

सही ढंग से देखभाल न किये जाने पर खेत में उगने वाले दोबड़े (दुब) और अन्य छोटे पौधे उकरड़ी कहलाते हैं।

हंकाई

खेत की हल से जुताई करके उसकी मिट्टी को बीज बोने के योग्य बनाने की क्रिया हंकाई कहलाती है।

कोट

पत्थरों को एक-दूसरे पर जमाकर बनाई गई खेत की दीवार कोट कहलाती है।

पोस्या र कोस्या

दीपावली के बाद के माह में बोई गई खेती पछेती/ पछांतो कहलाती है। इस फसल के लिए एक कहावत प्रचलित है ” पोस्या र कोस्या।”

खाखला

जौ, गेहूं जैसी फसल को गाहने के बाद अनाज अलग कर लेने के बाद तनों का कुचला हुआ रूप खाखला कहलाता है।

अर्डाव

तेज आवाज करके तेज गति से चलने वाली हवा स्थानीय भाषा में अर्डाव कहलाती है।

सील्ली मारबो या सील्ली बैवणो

पौष माह में चारों ओर लपट मारती हुई बहने वाली हवा (सीली) से जब पौधों पर कोई प्रभाव पड़ता है तो वह प्रभाव सील्ली मारबो या सील्ली बैवणो कहलाती है।

बग्गी

घग्घर नदी के उत्तरी भाग में उपजाऊ भूमि पाई जाती है जो समतल और चिकनी मिट्टी से बनी है उसे स्थानीय भाषा में बग्गी कहा जाता है।

ऊर्यो/ ऊसरड़ो या छापर्यो

ऐसा अनुपजाऊ खेत जिनमें घास और अनाज दोनों में से कुछ भी उत्पन्न नहीं होता है वह ऊर्यो/ ऊसरड़ो या छापर्यो
कहलाता है।

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