संत जाम्भोजी का इतिहास ( Sant jambhoji history in hindi ) इस लेख में विश्नोई सम्प्रदाय के प्रवर्तक जाम्भोजी के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी एकत्रित की गई है, जाम्भोजी राजस्थान के लोक संत के रूप में जाने जाते है| संत जाम्भोजी exam की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण टॉपिक है, इस में से एक प्रश्न अवश्य रूप से पूछा जाता है, जो अभ्यर्थी राजस्थान exam की तैयारी कर रहे है वे एक बार इस लेख का अवश्य रूप से अध्ययन कर लेवे|
नाम : गुरु जम्भेश्वर
जन्म :विक्रमसंवत-1508
समाधि : 1526 ई.
पिता : लोहट जी पंवार
माता : हंसादेवी
Contents
Sant jambhoji history in hindi
- जाम्भोजी का मूल नाम धनराज था।
- जम्भेश्वर जी का जन्म विक्रम सम्वत 1508 में जन्माष्टमी के दिन नागौर जिले के पीपासर गांव में मे हुआ था।
- जम्भेश्वर जी के पिता का नाम लोहट जी तथा माता का नाम हसादेवी था। इनके पिता पंवार राजपूत थे।
- इनकी माता हसादेवी ने उन्हें श्रीकृष्ण का अवतार माना।
- जम्भेश्वर जी ने 34 वर्ष की उम्र में सारी सम्पति दान कर दी और दिव्य ज्ञान प्राप्त करने बीकानेर के संभराथल नामक स्थान पर चले गये।
- जाम्भोजी ने बिश्नोई समाज में धर्म की प्रतिष्ठा के लिए 29 नियम बनायें।
- इसी तरह बीस और नौ नियमों को मानने वाले बीसनोई या बिश्नोई कहलाये।
- संत जम्भेश्वर जी को पर्यावरण वैज्ञानिक कहा जाता है।
- जाम्भोजी ने 1485 में समराथल (बीकानेर) में बिश्नोई सम्प्रदाय का प्रवर्तन किया।
- जाम्भोजी ने “ जन्म सहिंता”,. ” जम्मसागर शब्दावली” और “ बिश्नोई धर्म प्रकाश” आदि ग्रन्थों की रचना की गई।
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- जम्भेश्वर जी के द्वारा रचित 120 शब्द वाणियां भी संग्रहित है।
- संत जाम्भोजी ने हिन्दू तथा मुस्लिम धर्मों में व्याप्त भ्रमित आडम्बरों का विरोध किया।
- पुरानी मान्यता के अनुसार जाम्भेश्वर जी के प्रभाव के फलस्वरूप ही सिकन्दर लोदी ने गौ हत्या पर प्रतिबन्ध लगाया था
- संत जाम्भोजी ने बिश्नोई सम्प्रदाय की स्थापना कार्तिक बदी अष्टमी को सभराथल के एक ऊंचे टीले पर की थी, उस टीलें को इस पथ में ‘ धोक धोरे’ के नाम जाना जाता है।
- गुरू जम्भेश्वर जी के मुख से उच्चारित वाणी सबदवाणी कहलाती है, इसी को जम्भवाणी और गुरू वाणी भी कहा जाता है
- बीकानेर नरेश ने संत जाम्भोजी के सम्मान में अपने राज्य बीकानेर के झण्डे में खेजड़े के वृक्ष को माटों के रूप में रखा।
- राव दूदा का सम्बन्ध जाम्भेश्वर जी से था।
- राजस्थान के साथरी नामक स्थान पर जाम्भोजी उपदेश देते थे।
- बिश्नोई सम्प्रदाय में गुरू जाम्भोजी को विष्णु का अवतार मानते है।
- जाम्भोजी को गूंगा/ गहला उपनाम से भी जाना जाता है|
- गुरू जाम्भोजी का मूलमंत्र था – हृदय से विष्णु का नाम जपो और हाथ से कार्य करो। ‘
- गुरू जाम्भोजी ने संसार को नाशवान और मिथ्या बताया। इन्होंने इसे गोवलवास ‘ (अस्थाई निवास) कहा।
- पाहल-गुरू जाम्भोजी द्वारा तैयार’ अभिमंत्रित जल ‘ इसे पिलाकर इन्होंने आज्ञानुवर्ती समुदाय को बिश्नोई पंथ में दीक्षित किया था।
- कथा जैसलमेर की’ – संत कवि वील्होजी (सन् 1 5 32-1616) द्वारा लिखित इतिहास प्रसिद्ध कविता, जिसमें ऐसे छ राजाओं के नामों का पता चलता है, जो उनके समकालीन थे और उनकी शरण में आये थे। ये छ. राजा थे- दिल्ली के बादशाह सिकन्दर लोदी नागौर का नवाब मुहम्मद खां नागौरी, मेड़ता का राव दूदा, जैसमलेर का राव जैतसी, जोधपुर का राठौड़ राव सातल देव और मेवाड़ का महाराणा सांगा।
पीपासर Sant jambhoji history in hindi
नागौर जिले में स्थित पीपासर गुरू जम्भेश्वर जी की जन्म स्थली है। यहा उनका मदिर है तथा उनका प्राचीन घर और उनकी खड़ाऊ यहीं पर है।
मुक्तिधाम मुकाम
यहा गुरू जम्भेश्वर जी का समाधि स्थल है। बीकानेर जिले की नोखा तहसील मे स्थित मुकाम में सुन्दर मदिर भी बना हुआ है। जहां प्रतिवर्ष फाल्गुन और आसोज की अमावस्या को मेला लगता है।
मुक्ति धाम मन्दिर
- लालासर :- जम्भेश्वर जी ने यहा निर्वाण प्राप्त किया था।
- जाम्भा :- जोधपुर जिले के फलौदी तहसील में जाम्भा गाव है। जम्भेश्वर जी के कहने पर जैसलमेर के राजा जैतसिंह ने यहा एक तालाब बनवाया था। बिश्नोई समाज के लिए यह पुष्कर के समान पावन तीर्थ है।
- जागलू :- यह बीकानेर की नोखा तहसील में स्थित है। जम्भेश्वर जी का यहा पर सुन्दर मंदिर है।
रामड़ावास जोधपुर
यह जोधपुर जिले मे पीपल के पास स्थित है। यहा जम्भेश्वर जी ने उपदेश दिये थे।
रामड़ावास मन्दिर जोधपुर
- लोदीपुर :– उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद जिले में स्थित है। अपने भ्रमण के दौरान जम्भेश्वर जी यहां आये थे।
- 1526 ई. (वि. स. 1593) में त्रयोदशी के दिन मुकाम नामक गांव में समाधि ली थी।
- बिश्नोई नीले वस्त्र का त्याग करते है।
गुरु जाम्भोजी द्वारा बताये गये उनतीस नियम:-
- प्रसूता स्त्री तीस दिन तक घर का कोई भी कार्य नही करे।
- रजस्वला स्त्री पाँच दिन तक गृहकार्य से पृथक् रहे।
- प्रातःकाल स्नान करें।
- शीलव्रत ( मर्यादा ) का पालन करें।
- संतोष धारण करें।
- बाहरी एवं आंतरिक पवित्रता रखें।
- प्रातःकाल एवं सायंकाल संध्या-वंदना करें।
- संध्या काल में आरती एवं हरिगुण-गान करें।
- सर्वहित के लिए प्रेम पूर्वक हवन करें।
- पानी, ईंधन एवं दूध को छानकर काम में लेवें।
- वाणी को बुद्धि से विचार करके बोलें।
- क्षमा-दया धारण करें।
- चोरी नहीं करें।
- निंदा न करें।
- झूठ न बोलें।
- व्यर्थ विवाद न करें।
- अमावस्या का व्रत रखें।
- विष्णु का भजन करें।
- जीव मात्र पर दया भाव रखें।
- हरे वृक्ष न काटें।
- काम, क्रोध, लोभ, मोह, अंहकार आदि को अपने वष में रखें।
- रसोई अपने हाथों से बनायंे।
- थाट अमर रखें।
- बैल को बधिया ( नपुंसक ) न करवायें।
- अफीम न खायें।
- भांग न पीवें।
- तम्बाकू का सेवन न करें।
- मांस-मदिरा का सेवन न करें।
- नीले वस्त्र का प्रयोग न करें।
जाम्भोजी के गुरु का नाम
जाम्भोजी के गुरु का नाम गुरु गोरखनाथ था
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FAQ
उत्तर : जम्भेश्वर जी का जन्म विक्रम सम्वत 1508 में जन्माष्टमी के दिन नागौर जिले के पीपासर गांव में मे हुआ था।
उत्तर : 1526 ई. (वि. स. 1593) में त्रयोदशी के दिन मुकाम नामक गांव में समाधि ली थी।
उत्तर : जाम्भोजी के गुरु का नाम गुरु गोरखनाथ था
उत्तर : जाम्भोजी का मूल नाम/ बचपन का नाम धनराज था।
उत्तर : जाम्भोजी ने बिश्नोई सम्प्रदाय में कुल 29 नियम बनाये?
उत्तर : जम्भेश्वर जी के पिता का नाम लोहट जी तथा माता का नाम हसादेवी था
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