राजस्थान की लोकदेवियां ( Rajasthan ki lokdeviya ) राजस्थान में होने वाली विभिन्न भर्तियो की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण टॉपिक है|
Contents
Rajasthan ki lokdeviya
करणीमाता
- करणी माता का जन्म स 1444 में जोधपुर के लुवाप नामक गाव में किनिया शाखा के चारण मेहा के यहा मा देवल की कोख से हुआ।
- माता करणी का विवाह साठी निवासी देपाजी बिठू के साथ हुआ। पर ये सांसारिक कार्यों से विरक्त ही रही।
- करणी माता देश में चूहों की देवी के रूप में प्रसिद्ध है।
- माता करणी राठौड़ों (चारणों) की कुल देवी है।
- करणी माता के आशीर्वाद से राव बीका ने बीकानेर राज्य की स्थापना की थी।
- बीकानेर से 35 किलोमीटर दूर देशनोक में करणी माता का मंदिर है।
- राव जोधाजी के राजा बनने के बाद जोधपुर के किले मेहरानगढ़ की नीव करणी माता द्वारा ही रखी गई थी। करणी माता के मंदिर में सफेद चूहे काबा कहलाते है।
- चारण समाज के व्यक्ति इन चूहों को अपना पूर्वज मानते है।
- नवरात्रों में देशनोक में करणीमाता का मेला लगता है।
- करणी माता ने जोधपुर-बीकानेर के राज्यों को स्थापित कराने में महत्वपूर्ण सहयोग दिया।
- करणी मा की गायों का ग्वाला दशरथ मेघवाल गायों की रक्षा करते हुए मरा था।
- गोधन पर आक्रमण करने वाले राव कान्हां का इन्होंने वध किया और भय के मारे माग खाने वाले चारणों को इन्होंने चूहा बनने का शाप दिया। कहा जाता है कि करणी माता के मंदिर में चूहों की अधिकता इसी कारण है। जब माता प्रसन्न होगी तभी इनकी सद्गति होगी।
- बीकानेर क्षेत्र में करणी माता (चूहों की देवी) को शक्ति एवं जगत माता का अवतार माना जाता है।
- ऐसी मान्यता है कि यदि पूजा करते समय किसी व्यक्ति के सिर पर चूहा चढ़ जाता है तो उसे शुभ माना जाता है।
- करणी माता के बचपन का नाम रिद्धिबाई था।
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कैलादेवी
- कैलोदवी करौली के यदुवंशी राजवंश की कुलदेवी है।
- कैलादेवी को यदुवंशी (यादव) राजवंश दुर्गा के रूप में पूजता है।
- माता कैलादेवी के भक्त कैलादेवी की आराधना में प्रसिद्ध लांगुरिया गीत गाते हैं।
- कैलादेवी का लक्खी मेला प्रतिवर्ष चैत्रमास की शुक्ल अष्टमी को त्रिकूट पर्वत की चोटी पर भरता है।
- कस द्वारा देवकी की कन्या का वध करने पर यही कन्या कैलादेवी के रूप में त्रिकूट की घाटी में विराजित है।
- कैलादेवी के सामने ही बोहरा की छतरी है।
- पुश्तैनी बीमारी को बोहरा का पुजारी झाड़-फूक कर ठीक कर देता है।
- कैलादेवी गुर्जरों व मीणाओं की इष्टदेवी है।
- लागुरिया नृत्य हनुमानजी का प्रतीक है।
- जब तक कालीसिन्ध में स्नान नहीं किया जाता तब तक कैलादेवी की तीर्थयात्रा भी सफल नही होती।
जीणमाता ( Rajasthan ki lokdeviya )
- माता जीणमाता चौहानों की कुल देवी है।
- जीणमाता का जन्म धांधू में चौहान राजपूत कुल में हुआ था।
- जीण और हर्ष भाई-बहिन थे।
- हर्ष का विवाह होने पर एक दिन नणद-भौजाई में कहा सुनी हो जाने के कारण जीण घर से चली गई। हर्ष ने बहुत मनाया पर वह नहीं लौटी। अतः हर्ष भी उसके साथ हो लिया और पहाड़ों में तपस्या करने लगा।
- जीण माता का मंदिर सीकर से सात कोस दक्षिण में गांव के पास की पहाड़ियों में स्थित है।
- हर्ष पर्वत पर शिलालेख के अनुसार जीणमाता के मंदिर का निर्माण पृथ्वीराज चौहान (प्रथम) के शासन काल में हुआ।
- जीणमाता की अष्टभुजा प्रतिमा एक बार में ढाई प्याला मदिरा पान करती है। इसे प्रतिदिन ढाई प्याला शराब पिलाई जाती है।
- जीणमाता का मेला प्रतिवर्ष चैत्र और आश्विन माह के नवरात्रों में लगता है।
- जीण माता को जयन्ती का अपभ्रंश माना गया है, जयन्ती नव दुर्गाओं में प्रथम मानी जाती है।
- उपासक इस माता की तांत्रिक शक्ति पीठ को सिद्ध स्थल मानते हैं।
शिलादेवी
- शिलादेवी जयपुर के कछवाहा राजवंश की कुलदेवी है।
- आमेर राज्य के शासक मानसिंह (प्रथम) ने बंगाल विजय के पश्चात् इस देवी की प्रतिमा को प्रतिस्थापित किया।
- शिलादेवी के मदिर में जल व मदिरा के रूप में भक्तों को चरणामृत दिया जाता है।
- शिलादेवी की प्रतिमा अष्टभुजी है। भगवती महिषासुर मर्दिनी की मूर्ति के ऊपरी हिस्से पर पंचदेवों की प्रतिमाएं उत्कीर्ण है।
- माता शिलादेवी का प्रमुख स्थान आमेर (जयपुर) में है।
- शिलादेवी का मंदिर सफेद संगमरमर से निर्मित है, जो स्थापत्य कला की उत्कृष्ट कृति है।
शीतला माता ( Rajasthan ki lokdeviya )
- शीतला माता का प्रमुख स्थान शील की डूंगरी, चाकसू (जयपुर) है।
- माता शीतला एक ऐसी माता है, जिसकी खण्डित मूर्ति की पूजा होती है।
- शीतला माता का वाहन गधा होता है।
- शीतला माता के मंदिर का निर्माण सवाईमाधोसिंह ने चाकसू मे शील की डूंगरी पर बनवाया।
- माता का पुजारी कुम्हार होता है।
- शीतला माता का प्रतीक चिन्ह ‘ दीपक’ (मिट्टी की कटोरिया) होती है।
- चेचक की देवी के रूप में शीतला माता प्रसिद्ध है।
- शीतला माता का सेढ़ल माता, बच्चों की संरक्षिका आदि उपनामों से भी जाना जाता है।
- चाकसू में प्रतिवर्ष शीतलाष्टमी के दिन गधों के मेले का आयोजन होता है।
- प्राय जांटी (खेजड़ी) को शीतला माता मानकर पूजा जाता है।
- बांझ स्त्रियां संतान प्राप्ति हेतु शीतला माता की पूजा करती है।
- शीतला माता के मंदिर को सुहाग मंदिर के रूप में माना जाता है।
सकराय/ शाकम्भरी माता
- सकराय माता का आस्था केन्द्र उदयपुर वाटी (झुंझुनूं) के समीप स्थित है।
- माता सकराय खण्डेलवालों की कुल देवी के रूप में प्रसिद्ध है।
- सकराय माता ने अकाल से पीड़ित जनता को बचाने के लिए फल, सब्जियां, कंद-मूल उत्पन्न किये। इस शक्ति के कारण ये शाकम्भरी कहलाई।
- शाकम्भरी माता का मंदिर सांभर में है तथा एक मदिर सहारनपुर (उत्तरप्रदेश) में स्थित है।
- शेखावाटी अंचल में स्थित उदयपुर वाटी में सकराय माता की शक्ति पीठ है।
- इस शक्ति पीठ पर नाथ सम्प्रदाय का वर्चस्व रहा है।
राणी सती
- झुंझुनूं जिले की राणी सती लोकदेवी के रूप में प्रसिद्ध है।
- राणी सती का नाम नारायण बाई था।
- माता राणी सती का जन्म महम ग्राम (डोकवा) के अग्रवाल घुड़सालम के यहा हुआ।
- राणी सती का विवाह हिसार के तनधनदास के साथ हुआ। ये एक कुशल यौद्धा थे।
- हिसार के नवाब की रक्षा करते हुए धनदास की मृत्यु हो गई तब नारायणी बाई सन् 1652 में मार्गशीर्ष कृष्णा नवमी को अपने सतीत्व की रक्षा के लिए सती हुई। इनके परिवार में कुल 13 स्त्रियाँ सती हुई।
- झुंझुनूं में राणी सती का विशाल संगमरमरी मंदिर है।
- लोक भाषा मे राणी सती दादी जी के नाम से भी प्रसिद्ध है।
- सती माता को अग्रवाल जाति की कुलदेवी माना जाता है।
नारायणी माता
- नारायणी माता को नाई जाति के लोग अपनी कुलदेवी मानते है।
- माता नारायणी का मदिर अलवर जिले के राजगढ़ तहसील में बरवा डूंगरी तहसील में स्थित है।
- नारायणी माता का मदिर 11 वी सदी में बनाया गया।
- वर्तमान में मीणा व नाई जाति के बीच नारायणी माता को लेकर विवाद चल रहा है।
- अलवर जिले में नारायणी माता के पुजारी, मीणा होते हैं।
आई माता
- आई माता सिरवी जाति के क्षत्रिय लोगों की कुल देवी है।
- माता आई का बिलाड़ा (जोधपुर) में प्रमुख मदिर है। इस मंदिर में दीपक की ज्योति से केसर टपकती है।
- माता का थान बडेर कहलाता है, इसमें मूर्ति नहीं होती है।
- सिरवी लोग आई माता के मदिर को दरगाह कहते हैं।
- हर महीने की शुक्ला द्वितीया को आई माता की पूजा होती है।
- आई जी माता रामदेवजी की शिष्या थी।
- आई माता नवदुर्गा अर्थात् देवी का अवतार मानी जाती है।
- सिरवी जाति राजपूतों से निकली एक कृषक जाति मानी जाती है।
महामाई/ महामाया
- महामाई माता का स्थान मावली (उदयपुर) में है।
- महामाया को शिशु रक्षक लोकदेवी के रूप में श्रद्धा से पूजा जाता है।
- गर्भवती स्त्रियाँ अपनी प्रसव की पूर्ति के लिए और बच्चे को स्वस्थ प्रसन्न रखने के लिए मालवी की महामाया की पूजा करती हैं
घेवर माता
- राजसमन्द की पाल पर घेवर माता का मंदिर है।
- घेवर माता अपने हाथों में होम की ज्वाला प्रज्जवलित कर अकेली सती हुई थी।
- कहा जाता है कि जब राजसमन्द में पाल बनी तो वह बनते-बनते टूट जाया करती थी, तब किसी ज्योतिषी के कहने से ऐसी स्त्री की खोज की गई जो पतिव्रता हो और जिसके बाए गाल पर आखों के नीचे तिल हो। मालवे से घेवर बाई लाई गई। हाथ से पाल पर पत्थर रखवाया गया। वहीं महाराणा के सम्मुख हो करते-करते बिना पति के सती हुई।
जिलाणी माता
- अलवर जिले के बहरोड़ कस्बे की प्राचीन बावड़ी के पास लोकदेवी जिलाणी माता का प्रसिद्ध मंदिर है।
- जिलाणी माता ने हिन्दुओं की रक्षा की और इन्हें मुसलमान बनने से बचाया। Rajasthan ki lokdeviya
- लोकदेवी जिलाणी माता के मंदिर में प्रतिवर्ष दो विशाल मेलों का आयोजन किया जाता है।
भद्राणी/ भदाणा माता
- भदाणा माता कोटा के शासकों की कुलदेवी है।
- कोटा से 5 किलोमीटर दूर भदाणा नामक स्थान पर माता का मदिर है।
- भदाणा माता के मदिर में मूठ (मारण का तांत्रिक प्रयोग) की झपट में आये व्यक्ति को मौत के मुंह से बचाये जाने का उपक्रम होता है। Rajasthan ki lokdeviya
- मूठ में प्राय उड़द, मूंग फैंके जाते है। भोपा घुटने व कुहनिया जैसे स्थान चूसकर उड़द, मूग निकालकर बाहर फेंकता है फिर देवी के सम्मुख भैरू को बोतल की धार देने को कहा जाता है। ठीक होने पर सवामण का प्रसाद करने व एक माह बाद दर्शन करने का सकल्प लिया जाता है। भोपा फिर चूसकर रहे-सहे उड़द, मूग निकाल देता है।
छींक माता
- राज्य में माघ सुदी सप्तमी को छींक माता की पूजा होती है।
- जयपुर के गोपाल जी के रास्ते में इनका मदिर है।
- छीक माता मुख्यत जयपुर की है।
बडली माता
- बडली माता की ताती बाधने से बीमार व्यक्ति ठीक हो जाता है।
- माता का मदिर चित्तौड़गढ़ जिले में छीपों के अकोला में
- बेड़च नदी के किनारे स्थित है।
- बच्चों को दो तिबारियों से निकालने पर बीमार बच्चा अच्छा हो
- जाता है।
- लोग बडली माता की ताती बाधते है।
- मनौती पूरी होने पर लोहे का त्रिशूल चढ़ाते है।
सचिया माता
- सचिया माता का प्रमुख स्थल ओसिया (जोधपुर) में है।
- माता ओसवालों की कुलदेवी है।
- सचिया माता की वर्तमान प्रतिमा कसौरि पत्थर की है। यह प्रतिमा वस्तुत महिषासुर मर्दिनी देवी की है।
- माता सचिया सम्प्रदायिक सद्भाव की देवी है।
- सचिया माता के मंदिर का निर्माण परमार राजकुमार उपलदेव ने करवाया था।
आवड़/ आवक माता
- आवक माता का जन्म जैसलमेर में आगमन वि. स. 888 के आसपास माना जाता है।
- आवक माता ने लूणराज भाटी को आपने हाथ का एक स्वर्ण चूड़ा देकर आशीर्वाद दिया कि इस चूड़े को अपने दाहिने हाथ में धार करने के बाद यदि तू युद्ध भूमि में उतरेगा तो अकेले ही खड्ग से शत्रु की सेना को पराजित करेगा।
आशापुरा माता
- आशापुरा माता बिस्सा जाति के लोगों की कुलदेवी है।
- बिस्सा जाति के लोग आशापुरा माता के उपासक है।
- बहुत से लोगों की मनोकामना पूर्ण करने पर यह आशापुरा माता के नाम से प्रसिद्ध हुई।
- आशापुरा माता का मंदिर पोकरण के पास स्थित है।
- बिस्सा जाति में विवाहित वधू मेंहदी नहीं लगा सकती है।
- भाद्र शुक्ला दशमी व माघ शुक्ला दशमी को दो विशाल उत्सव आशापुरा माता के लिए होते है।
- वि सं 1200 के लगभग बिस्सा जाति के लोग, कुलदीप श्री लूण भाणजी के साथ कच्छभुज से पधारे थे।
- बिस्सा जाति के लोग झडूला यहीं उतारते है तथा विवाह के बाद ‘ जात’ लगाने भी जाते है।
आमजा माता
- आमजा माता का मंदिर उदयपुर से 80 किलोमीटर दूर केलवाड़ा
- में स्थित है।
- आमजा माता केलवाड़ा के पास गाव रीछड़े में भीलों की देवी है।
- आमजा माता की पूजा के लिए एक भील भोपा तथा दूसरा
- ब्राह्यण पुजारी है।
- प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास मे शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मदिर के अहाते
- मे मेला लगता है।
चारणी देवियां/ आवड़ माता
- चारणी देवी सात देवियों के रूप में प्रसिद्ध है।
- माता चारणी देविया जैसलमेर क्षेत्र की है।
- चारणों की देविया ‘ आवड़ा’, ‘ आईनाथ’, ‘ जोगमाया के रूप में पूज्य है।
- जैसलमेर से कुछ दूरी पर भूगोपा के पास एक पहाड़ी की में तेमडेराय का मंदिर स्थित है, जो सात देवियों का मदिर है।
- चारण देवियों की स्तुति चरजा’। कहलाती है, जो दो प्रकार की होती है -सिंघाऊ और ‘ घड़ाऊ
- सात देवियों की सम्मिलित प्रतिमा को ढाला कहा जाता है।
सांगिया/ स्वागिया/ स्वागृहाणी/ सुग्गामाता
- स्वागिया माता भाटी शासकों की कुलदेवी है।
- माता मुख्यत जैसलमेर क्षेत्र की है।
- स्वागिया माता को जैसलमर के राज्य चिन्ह में स्वांग (भाला) को मुड़ा हुआ हाथ में लिए दिखाया गया है।
- राज चिन्हों में सबसे ऊपर पालम चिड़िया, जिसे शकुन/ सुगन चिड़ी भी कहते है। यह देवी का प्रतीक है।
- सुगन चिड़ी को आवड़ माता मानते है।
तणोटिया माता
- तणोटिया माता का मन्दिर तनोट (जैसलमेर) में है।
- माता भाटी शासकों व सेना के जवानों की कुल देवी मानी जाती है।
- तनोट माता के मंदिर में पुजारी का काम सीमा सुरक्षा बल व सेना के जवान करते है।
- तणोटिया माता के मदिर के सामने भारत पाक युद्ध (1965) मे भारत विजय का प्रतीक विजय स्तभ स्थापित है।
- तणोटिया माता को थार की वैष्णो देवी भी कहा जाता है।
- इस मदिर के पास पाक सेना द्वारा गिराये गये बम्बों में विस्फोट नहीं हुआ।
जमुवाय माता
- जमुवाय माता का स्थान जमुवा रामगढ़ में है।
- माता कछवाहा शासको की कुल देवी है।
- जयपुर में स्थित यह माता अन्नपूर्णा के नाम से जानी जाती है।
त्रिपुरा सुन्दरी माता
- त्रिपुरा सुन्दरी माता तिलवाड़ा (बांसवाड़ा) की है।
- इस माता की पूजा शक्ति पीठ के रूप में होती है।
- त्रिपुरा सुन्दरी माता की 18 भुजाओं वाली काले पत्थर से उत्कीर्ण मूर्ति है।
लुटियाला/ लटियाला माताजी
- लुटियाला माता लोद्रवा फलौदी क्षेत्र की है।
- माता का मदिर फलौदी में है, जिसके आगे खेजड़ा (शमीवृक्ष) स्थित है, इसलिए इन्हें खेजड़ बेरी रायभवानी भी कहते है। Rajasthan ki lokdeviya
- लुटियाला माता का एक भव्य मदिर बीकानेर के नवा शहर में स्थित है।
ज्वाला माता
- ज्वाला माता जोबनेर क्षेत्र की है।
- माता ज्वाला को राजपूतों का खंगारोत राजवंश अपनी कुल देवी मानता है।
अश्रुपूर्णा बड़बड़ी माता
- बड़बड़ी माता का मंदिर जैसलमेर में है।
- अश्रुपूर्णा बड़बड़ी माता कछवाहों की कुलदेवी मानी जाती है।
हर्षद् माता
- हर्षद् माता का प्रमुख स्थान आभानेरी (दौसा) में है।
- माता हर्षद् का मदिर महामारू शैली का है।
अम्बा माता
- अम्बा माता उदयपुर की है।
- माता का एक मदिर माउण्ट आबू में है।
बाण माता
- बाण माता उदयपुर की है।
- माता सिसोदिया वंश की कुल देवी है।
कालका माता
- कालका माता का प्रसिद्ध मदिर पल्लु (हनुमानगढ़) में है।
- माता सोनियों (सुनारों) की कुलदेवी है।
विरात्रा माता
- विरात्रा माता विरात्रा (बाड़मेर) क्षेत्र की है।
- माता भोपों की कुलदेवी है।
राजेश्वरी माता
- राजेश्वरी माता भरतपुर की कुलदेवी है।
- माता राजेश्वरी माता भरतपुर की है।
आवरी माता
- आवरी माता का मन्दिर निकुम्भ (चित्तौड़गढ़) में है।
- माता की पूजा से लकवा ग्रस्त, लूले व लगड़े लोगों को स्वास्थ्य में लाभ होता है।
हिंगलाज/ आवड़ माता
- हिंगलाज माता मुख्यत लोद्रवा क्षेत्र की है।
- हिंगलाज माता चौहान वंश की कुल देवी है।
पथवारी माता
- पथवारी देवी गांव के बाहर स्थापित की जाती है।
- तीर्थयात्रा की सफलता की कामना हेतु राजस्थान में पथवारी देवी की लोकदेवी के रूप में पूजा की जाती है।
हिचकी माता
- यह सनवाड़ (उदयपुर) फतेहनगरी की लोकदेवी है।
- इस माता की पूजा से हिचकी निवारण हो जाता है, इसलिए इसको हिचकी माता कहा जाता है।
चौथ माता
- चौथ माता का मदिर चौथ का बरवाड़ा (सवाई माधोपुर) में है।
- स्त्रिया अपने सुहाग की रक्षा हेतु करवा चौथ व चौथ माता का व्रत करती हैं।
अम्बिका माता
- अम्बिका माता का मदिर जगत (उदयपुर) में है।
- जगत (उदयपुर) शक्ति पीठ कहलाता है।
राजस्थान की अन्य लोकदेवियाँ
- दाधीच लोगों की कुल देवी दधिमती है।
- ऊँटा माता जोधपुर क्षेत्र की है।
- भांवल माता मेड़ता (नागौर) क्षेत्र की है।
- इन्दर माता इन्दरगढ़ (बूंदी) क्षेत्र की है।
- पीपाड़ माता ओसिया (जोधपुर) की है।
- जोगणियाँ माता भीलवाड़ा जिले की है।
- ब्राह्मणी माता कुम्हारों की कुलदेवी है।
- खोडियान देवी खोड़ाल लोंगीवाला (जैसलमेर) की है।
- अधर देवी माउण्ट आबू (सिरोही) की है।
- चारभुजा माता खमनौर (जोधपुर) क्षेत्र की है।
- भद्रकाली माता हनुमानगढ़ जिले की है।
- मंशा देवी चूरू जिले की है।
- परमेश्वरी माता कोलायत बीकानेर की है।
- सच्चिका माता आर्णिया (नागौर) की है।
- छींछ माता बासवाड़ा की है।
- बिखड़ा माता चित्तौड़ दुर्ग (चित्तौड़गढ़) की है।
- क्षेमकरी माता भीनमाल जालौर की है।
- सुडा/ सुधा देवी सुडा पर्वत (जालौर) की है।
- सीमल माता बसतगढ़ सिरोही की है।
- कैवाय माता किणसदिया (परबतसर-नागौर) की है।
- देवी के गीत व मत्र इत्यादि ‘ चिरजा “ कहलाते है।
- गले में बाधी जाने वाली देवी की प्रतिकृति नावा’ कहलाती है।
- अलौकिक शक्ति के द्वारा किसी कार्य को करना अथवा करवा देना पर्चा देना (शक्ति का परिचय) कहलाता है।
- रोग निवारण लोक देविया– छींक माता, आवरी माता, सती माता।
तिथियों की लोकदेविया- चौथ माता, छठ माता, दशा माता।
रियासतों की कुल देवियां
कुलदेवी | रियासत |
जीण माता | सीकर |
शिलादेवी | आमेर |
कैलादेवी | करौली |
करणी माता | बीकानेर |
नागणेची (चामुण्डा, 16 भुजाएँ) | जोधपुर |
जमुवा माता | जयपुर |
बाणमाता | उदयपुर |
भदाणा माता | कोटा |
स्वागिया माता | जैसलमेर |
ज्वाला माता | जोबनेर |
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