karak ki pribhasha in hindi ( कारक की परिभाषा और भेद ) : हिंदी व्याकरण की इस पोस्ट में कारक और उसके भेद को बहुत ही विस्तार पूर्वक उदाहरण सहित समझाया गया है , जो अभ्यर्थी REET PRI, REET MAINS, 1ST GRADE, 2ND GRADE, RAS, RAJ. POLICE आदि भर्ती परीक्षाओ की तेयारी कर रहे है, उन्हें इस पोस्ट को एक बार अवश्य रूप से पढ़ लेना चाहिए| karak ki pribhasha in hindi
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karak ki pribhasha in hindi
कारक की परिभाषा
परिभाषा :- ‘ कारक’ का अर्थ होता है ‘ करने वाला‘, क्रिया का निष्पादक। जब किसी संज्ञा या सर्वनाम पद
का सम्बन्ध वाक्य में प्रयुक्त अन्य पदों व क्रिया के साथ जाना जाता है, उसे ‘ कारक‘ कहते हैं।
विभक्ति – ‘कारक ‘ को प्रकट करने के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला चिन्ह विभक्ति कहलाता
है। विभक्ति को परसर्ग भी कहते हैं।
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कारक के प्रकार : 8 प्रकार होते है|
- कर्त्ता कारक
- कर्म कारक
- करण कारक
- सम्प्रदान कारक
- अपादान कारक
- सम्बन्ध कारक
- अधिकरण कारक
- सम्बोधन कारक
1. कर्त्ता कारक
क्रिया करने वाले को व्याकरण में ‘ कर्त्ता ‘ कारक कहते हैं। कर्ता कारक का चिन्ह ‘ ने ‘ होता है। यह संज्ञा अथवा सर्वनाम ही होता है तथा क्रिया से उसका सम्बन्ध होता है। विभक्ति का प्रयोग सकर्मक क्रिया के साथ ही होता है। वह भी भूतकाल में। जैसे :-
- राधा ने नृत्य किया।
- श्याम ने पत्र लिखा।
- मीना ने गीत गाया।
- उसने पढ़ाई की होती तो पास हो जाता।
2. कर्म कारक
क्रिया का फल जिस शब्द पर पड़ता है उसे कर्म कारक कहते हैं। कर्म कारक का विभक्ति चिन्ह ‘ को ‘ है। विभक्ति ‘ को ‘ का प्रयोग केवल सजीव कर्म कारक के साथ ही होता है, निर्जीव के साथ नहीं। जैसे :-
- राधा ने नौकर को बुलाया।
- वह पत्र लिखता है।
- स्वाति कॉलेज जा रही है।
- मीना ने गीता को पुस्तक दी।
आज्ञासूचक शब्दों में निर्जीव के लिए भी विभक्ति का प्रयोग होता है।
जैसे :- - पुस्तक को मत फाड़ो।
- कुर्सी को मत तोड़ो।
स्वाभाविक क्रियाओं में-
जैसे :- - उसको प्यास लगी है।
- राम को बुखार हो रहा है।
3. करण कारक
करण का शब्दिक अर्थ है साधन। वाक्य में कर्ता जिस साधन या माध्यम से क्रिया करता है अथवा क्रिया के साधन को करण कारक कहते हैं। करण कारक की विभक्ति ‘ से ‘ व ‘ के’ द्वारा है। जैसे :-
- मैं कलम से लिखता हूँ।
- मैंने गिलास से पानी पीया।
- सानिया बैट से खेलती है।
- मैंने दूरबीन से पहाड़ों को देखा।
क्रिया सम्पादित करने के क्रम में - प्रिया पेन्सिल चित्र बनाती है।
के द्वारा/ द्वारा - मुझे दूरभाष द्वारा सूचना प्राप्त हुई।
- उसे डाकिए के द्वारा पत्र प्राप्त हुआ।
आज्ञा जनित वाक्य – - ध्यान से अध्ययन करो।
- स्कूटर से नहीं साइकिल से स्कूल जाओ।
- सीख- मेहनत से अच्छे अंक मिलते हैं।
- रीति से – भिखारी क्रम से बैठे हैं।
- गुण या स्थिति – राम हृदय से ही दयालु है।
- वह स्वभाव से ही कंजूस है।
- मूल्य – सेव किस भाव से दे रहे हो?
- उत्पत्ति के क्रम में – सोना (धरती) खानों से मिलता है।
- नदी पहाड़ से निकलती है
- दूरी बताने में – आगरा दिल्ली से दूर नहीं है।
- तुलना करने में – मोहन सोहन से तेज भागता है।
- कमी दिखाने के लिए – बुखार से बहुत कमजोर हो गया।
- वह अकल से (अन्धा/ पैदल) है।
प्रार्थना/ निवेदन – - ईश्वर से सद्बुद्धि माँगें।
- अध्यापक से पूछकर कक्षा से बाहर जाओ।
4. सम्प्रदान कारक
सम्प्रदान (सम् + प्रदान) का शाब्दिक अर्थ है – देना। वाक्य में कर्ता जिसे देता है अथवा जिसके लिए क्रिया करता है, उसे सम्प्रदान कारक कहते हैं। जब कर्ता स्वत्व हटाकर दूसरे के लिए दे देता है, वंहा सम्प्रदान कारक होता हैं।
सम्प्रदान कारक की विभक्ति ‘ के लिए, को ‘ है। ‘ के वास्ते, के निमित्त, के हेतु ‘ भी कह सकते है| जहाँ क्रिया द्विकर्मी हो वंहा विभक्ति ‘को ‘ का प्रयोग होता है| जैसे :-
के लिए-
- सैनिकों ने देश की रक्षा के लिए बलिदान दिया।
- लोगों ने बाढ़ पीड़ितों के लिए दान दिया।
- मैरिट में आने के लिए मेहनत करो।
‘ को ‘ - राजा ने गरीबों को कम्बल दिए।
- पुलिस ने चोर को दण्ड दिया।
5. अपादान कारक
अपादान का अर्थ होता है – पृथक होना या अलग होना| संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से एक वस्तु का व्यक्ति का दूसरी वस्तु या व्यक्ति से अलग होने या तुलना करने का भाव हो वहाँ अपादान कारक होता है
अपादान कारक की विभक्ति ‘ से’ है।
पृथकता के अलावा अन्य अर्थों में भी अपादान कारक का प्रयोग होता है, जैसे:-
- पेड़ से पत्ता गिरा।
- मेरे हाथ से गेंद गिर गई।
- विजय शाला से घर आया।
क्रिया सम्पादन में– - मजदूर गेंती से गड्ढा खोदता है।
- वह पेन्सिल से चित्र बनाता है।
- पहचान के अर्थ — यह मारवाड़ से है।
- दूरी — पोस्टऑफिस स्कूल से दूर है।
- तुलना — विमला सीता से लम्बी है।
- शिक्षा – शिष्य गुरु से शिक्षा ग्रहण करता है।
6. संबंध कारक
शब्द का वह रूप जो दूसरे संज्ञा या सर्वनाम शब्दों से सम्बन्ध बतलाए, संबंध कारक कहलाता है
सम्बन्ध कारक की विभक्ति – का, के, की, रा, रे, री एंव ना, ने, नी है| जैसे :-
- स्वामित्व – अपना पर्स सम्हाल कर रखो।
- मेरा चश्मा बहुत कीमती है।
- रिश्ता – विजय अजय का भाई है।
- अमिताभ बच्चन कवि हरिवंशराय बच्चन के पुत्र हैं
- अवस्था – मेरी उम्र पचास वर्ष है।
- यह युवक तीस वर्ष का है।
कोटि/ धातु - पाँच मिट्टी के घड़े लाओ।
- मैंने एक कांसे की कटोरी खरीदी है।
- मेरी साड़ी सिल्क की है।
- प्रश्न – पाँचवीं कक्षा में कितने छात्र हैं?
- आपके कितनी सन्तानें हैं?
7. अधिकरण कारक
वाक्य में प्रयुक्त संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के आधार का बोध होता है, उसे अधिकरण कारक कहते हैं।
अधिकरण कारक की विभक्ति है — में एवं पर। ‘ में’ का अर्थ है अन्दर या भीतर तथा ‘ पर’ का अर्थ है-ऊपर। जैसे:-
- ‘ में ‘ — इस मन्दिर में कई मूर्तियाँ हैं।
- उस कप में चाय है। मेरे पर्स में पैसे व ड्राइविंग लाइसेंस हैं।
- टायर में हवा कम है। बगीचे में छायादार पेड़ हैं।
कभी-कभी ‘ में’ का प्रयोग बीच या मध्य के रूप में भी होता है। जैसे:- - राम और श्याम में गहरी दोस्ती है।
- भारत की संस्कृति विश्व में विशेष स्थान रखती है।
- पी.टी. उषा का नाम श्रेष्ठ धावकों में है।
- ‘ पर ‘ – मेज पर पुस्तक रखी है।
- पेड़ पर चिड़िया बैठी है।
निश्चित समय बताने के लिए - परीक्षा समाप्ति की घण्टी तीन बजने पर लगेगी।
- प्रति आधे घण्टे पर चेतावनी घण्टी लगानी है।
महत्व बतलाने के लिए– - कदम – कदम पर पुलिस का पहरा है।
- बहुत सैनिक सीमा पर तैनात हैं।
- हमें अपनी जुबान पर अटल रहना चाहिए।
जल्दबाजी बतलाने के लिए— - वह तो घोड़े पर सवार होकर आता है।
8. सम्बोधन
वाक्य में जब किसी संज्ञा या सर्वनाम को पुकारा जाए अथवा सम्बोधित किया जाए उसे सम्बोधन कारक कहते हैं।सम्बोधन में पुकारने, बुलाने एवं सावधान करने का भाव होता है।
सम्बोधन कारक के विभक्ति चिन्ह हैं – हे, ओ, अरे। जैसे :-
- हे भगवान ! कैसा जमाना आ गया है?
- हे ईश्वर ! मेरा पोता कहाँ गया?
- अरे अरे ! ये क्या कर रहे हो?
- अरे ! गुरुजी, आप इधर कैसे?
- अरे ! बच्चो शोर मत करो।
- ओ-ओ खिलौने वाले ! बतलाना कैसे खिलौने लाये हो।
- ओ भाई ! कहाँ भागे जा रहे हो?
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