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कुसमायोजन व इसके प्रकार, कुसमायोजित बालक की पहचान
कुसमायोजन kusamayojan
सभी प्राणियों के समान मानव की भी अनेक आवश्यकताएँ होती है। यही आवश्यकताएँ व्यक्ति को लक्ष्य की ओर अग्रसर करती है | तथा वह आगे बढ़ता है जब व्यक्ति को अपने लक्ष्य की प्राप्ति आसानी से हो जाती है तो उसे संतोष की अनुभूति होती है, किन्तु जब लक्ष्य प्राप्त करने में उसे अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है तो उसे एक अप्रियता की अनुभूति होती है जिसे हम असन्तोष, हताश, निराशा या कुण्ठा कह सकते हैं। kusamayojan
एक व्यक्ति जो अपने आप को या अपने विचारों को किसी स्थिति या परिस्थिति के साथ संतुलित या अनुकूलित करने में सक्षम नहीं होता, तो वह व्यक्ति कुसमायोजित व्यक्ति कहलाता है।
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इसी प्रकार जब किसी व्यक्ति को अपनी इच्छाओं और अभिरूचियों के प्रतिकूल सामना करना पड़ता है तो उसके अन्दर मानसिक द्वन्द्व एवं तनाव की उत्पत्ति होती है। तनाव की स्थिति में व्यक्ति के मन में एक प्रकार की उथल-पुथल मच जाती है, जिसको दूर करने के लिए वह बाधाओं को दूर करने की कोशिश करता है। उसके ये प्रयास यदि सफल होते है तो वह वातावरण के साथ एक प्रकार से समायोजन कर लेता है। यदि बाधाओं को दूर करने में असफल रहता है और अवांछनीय मार्ग को अपना लेता है तो वह कुसमायोजन की स्थिति में आ जाता है। इस कुसमायोजन की स्थिति को मानसिक रोगग्रस्तता की स्थिति भी कहते है।
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कुसमायोजन की परिभाषाएँ
एलेक्जेंडर एवं स्वीट्स के अनुसार– ” कुसमायोजन से अभिप्रायः कई प्रवृत्तियों से हैं, जैसे-अतृप्ति, भग्नाशा एवं तनावात्मक स्थितियों से बचने की अक्षमता, मन की अशान्ति एवं लक्षणों का निर्माण।”
आइजेंक और अन्य के अनुसार- ” यह वह अवस्था है, जिसमें एक व्यक्ति की आवश्यकताएँ तथा दूसरी ओर वातावरण के अधिकारों में पूर्ण असन्तुष्टि होती है।”
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1. तनाव (Depression)
ड्रेवर के अनुसार तनाव का अर्थ है ” संतुलन के नष्ट होने की सामान्य भावना और परिस्थिति के किसी अत्यधिक संकटपूर्ण कारक का सामना करने के लिए व्यवहार में परिवर्तन करने की तत्परता।”
गैट्स व अन्य के अनुसार- ” तनाव असंतुलन की दशा है जो व्यक्ति को उत्तेजित अवस्था का अंत करने के लिए प्रेरित करती है।
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तनाव कम करने की विधियाँ
- बाधा निवारण विधि
- उपाय खोज विधि
- लक्ष्य प्रतिस्थापन विधि
- व्याख्या विधि
- शोधन विधि
- आत्मीकरण विधि
- दमन विधि
- प्रक्षेपण विधि
- क्षतिपूर्ति पद्धति
उदाहरण -1. निशा कॉम्पटीशन की तैयारी करने के लिए जयपुर आई, यहाँ आने के बाद उसने पढ़ाई करने के लिए कमरा लिया, उस कमरे के पास एक लोहे की फैक्ट्री थी, जैसे ही वह पढ़ाई करने लगती, लोहे की तेज-तेज आवाजें आने से उसको पढ़ाई करने में बाधा उत्पन्न होती। फिर उसने दूसरा कमरा ढूँढने की कोशिश की, लेकिन उसे काफी समय बाद भी सही कीमत पर कमरा नहीं मिल रहा था, इस वजह से वह पढ़ाई में ध्यान नहीं दे पा रही थी और इससे वह तनाव का शिकार हो गई |
उदाहरण -2. दो दिन बाद परीक्षा है और रोल नम्बर इंटरनेट पर अपलोड नहीं हो रहे या Exam के अनुसार तैयारी भी नहीं है जब समय के अनुसार कार्य नहीं होता, तो तनाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
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2. संघर्ष/ द्वंद्व (Conflict)
संघर्ष के प्रकार
क्रो व क्रो के अनुसार- ” संघर्ष उस समय उत्पन्न होते है जब एक व्यक्ति को पर्यावरण की उन शक्तियों का सामना करना पड़ता है जो उसकी स्वयं की रूचियों और इच्छाओं के विपरीत कार्य करती है।”
फ्रायड के अनुसार- ” इदम्, अहम् और परम अहम् के मध्य सामंजस्य का अभाव होने से मानसिक संघर्ष उत्पन्न होता है।”
डगलस तथा हॉल के अनुसार- ” द्वंद्व उस पीड़ादायक संवेगात्मक दृष्टि को कहते हैं जो विरोधी और प्रतिवादात्मक इच्छाओं के मध्य तनाव से उत्पन्न होती है।’ ‘
3.भग्नाशा/ कुण्ठा (Frustration)
जेम्स ड्रेवर के अनुसार- “किसी प्राणी के लक्ष्य की प्राप्ति का मार्ग अवरूद्ध हो जाना ही कुंठा है। “
कोलसनिक के अनुसार- “भग्नाशा उस आवश्यकता की पूर्ति या लक्ष्य की प्राप्ति में अवरूद्ध होने या निष्फल होने की भावना है, जिसे व्यक्ति महत्त्वपूर्ण समझता है।”
गुड के अनुसार- “किसी इच्छा या आवश्यकता के मार्ग में उत्पन्न संवेगात्मक तनाव। “
4.दुश्चिन्ता (Dilemma)
5. दबाव (Stress)
कुसमायोजन के कारण (Due to Maladjustment)
- शारीरिक कारण (Physical)
- मानसिक कारण (Mental)
- पारिवारिक कारण (Family)
- सामाजिक कारण (Social)
- भाषायी कारण (Linguistic)
- सांस्कृतिक कारण (Cultural)
- क्षेत्रीय कारण (Regional reasons)
- जातिय कारण (Ethnic reasons)
- धार्मिक कारण (Religious reasons)
- आर्थिक कारण (Commercial Purpose))
- रोजगार संबंधी कारण (Employment reasons)
- वेशभूषा एवं पहनावा संबंधी कारण (Costumes reasons)
- रीति-रिवाज एवं परम्पराएँ (Customs and Traditions)
- बालक की स्वयं से महत्वाकांक्षाएँ (Child has ambition by himself)
- बालक से समाज की अपेक्षाएँ (Society’s acceptations from a Child)
- बालक से परिवार की अपेक्षाएँ (Family acceptations from a Child)
कुसमायोजित बालक की पहचान :
- कुसमायोजित व्यक्ति में भय, तनाव, धैर्य का अभाव होता है | इसी कारण ये साहसी नहीं होते है।
- कुसमायोजित व्यक्ति में सृजनशीलता का अभाव पाया जाता है।
- कुसमायोजित व्यक्ति संवेगात्मक रूप से अस्थिर, एकांतप्रिय तथा नकारात्मक सोच रखने वाले होते है |
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