शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत के शैक्षिक निहितार्थ

शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत के शैक्षिक निहितार्थ : इस पोस्ट में इवान पी. पावलाव के शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत के शैक्षिक निहितार्थ के बारे में विस्तार पूर्वक समझाया गया है |

Contents

शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत के शैक्षिक निहितार्थ

1. विद्यार्थियों में आदतों का निर्माण, रुचियों, अभिरुचियों, अभिवृत्तियों आदि का समुचित विकास करना।
2. विभिन्न प्रकरणों को सीखने में अनुबंधित अनुक्रिया का सिद्धांत अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है।
3. इस सिद्धांत के अनुसार बच्चों को कभी भी ऐसे शब्द ना कहे जिनसे उनके मन में घृणा, कुंठा आदि उत्पन्न हो।
4. बुरी तथा अवांछित एवं भय संबंधी मानसिक भ्रांतियाँ दूर करने में सहायक तथा असामान्य व्यवहार आदि को समाप्त करने के लिए भी उपयोगी है।
5. यह सिद्धांत यांत्रिक तरीके से सीखने पर बल देता है।
6 यह सिद्धांत चरित्र निर्माण में भी सहायक होता है।

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7. मानसिक रूप से पिछड़े व्यक्तियों को पढ़ाने व प्रशिक्षित करने के लिए भी अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धांत को प्रयोग में लाया जा सकता है।
8. अध्यापकों के प्रति छात्रों का उचित दृष्टिकोण विकसित करने में भी उपयोगी है।
9. इस सिद्धांत से सुलेख और अक्षर विन्यास का अभ्यास कराया जाता है।
10. भाषाओं को सीखने तथा सीखाने के लिए उपयोगी।
11. शिक्षण में श्रव्य-दृश्य सामग्री का उपयोग इसी सिद्धांत पर आधारित है।
12. पावलॉव का सिद्धांत शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया में पुनरावृत्ति (Recapitulation) पर बल देता है।
13. डमरू पर बंदर या भालू का नाचना इसी सिद्धांत का उदाहरण है।
14. क्रो एण्ड क्रो के अनुसार यह सिद्धांत उन विषयों की शिक्षा के लिए उपयोगी है जिसमें चिंतन की आवश्यकता नहीं होती। जैसे सुलेख लिखना।

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